Book Title: Ogh Niryukti
Author(s): Bhadrabahuswami, Gyansagarsuri, 
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 13
________________ श्रीमती घनियुक्तिः / // 9 // - संपादकीय / -: संपादकोय :सूत्र, नियुक्ति, भाष्य अने टीका स्वरूप आगमनां पांच अंगो तत्त्वना सत्य स्वरूपने प्रगट करे छे, / अने तेथी निर्णीत वस्तु यथार्थ अवबोधनुं कारण बने छ। आ अवबोध सुलभ बने ए हेतुथी श्रेष्ठि देवचंद लालभाई जैन पुस्तकोद्धार फंडना कार्यवाहकगणे अद्यावधि अमुद्रित आगम पंचांगी ग्रन्थोने प्रगट करवानी योजना वर्षों पहेलां घडी हती / तदनुसार अनेक मुनिभगवंतोने ते ते ग्रंथोनुं संपादन करी आपवा विज्ञप्ति करेल तेना फलस्वरूप अनेक ग्रंथो प्रकाशनमा आव्या / प्रस्तुत ग्रंथ पण तेमांनो एक ग्रंथ छे / जेनुं नाम ओपनियुक्ति अवचूरी छ / श्री ओघनियुक्ति उपर आगमरहस्यार्थवेदी पूज्य द्रोणाचार्य भगवंते टीका रची हती, पण ते विशाल तेमज प्राथमिक भूमिकावाळा साधुओने कठीन पडे तेम होवाथी पू. आचार्य भगवंत देवसुदरसूरिवरपट्टालंकार पू. आचार्यभगवंत श्री ज्ञानसागरसूरीश्वरजीए वि. सं. 1439 मां ओपनियुक्ति उपर सुगमबोधवाली अब चरी रची। घणे स्थाने तो मळना कठीन शब्दोनो अर्थ करी सरल संस्कृतमा गाथानो पूर्ण भाव समजाववा सुन्दर प्रयत्न कर्यो छे / घणां स्थले केवल कठीन शब्दोना अर्थो ज कर्या छ / जे जे गाथाओ सरल छ त्यां 'स्पष्टा' एवो निर्देश करीने अवचूरी करी ज नथी। टुकमा लखवानुं के जे जे गाथा वांचननी साथे // 1 // in Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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