Book Title: Nyayvinischay Vivaran Part 01 Author(s): Vadirajsuri, Mahendrakumar Jain Publisher: Bharatiya Gyanpith View full book textPage 7
________________ अनुक्रम ४४ २० सम्पादकीय पृ०६-८ | प्रत्यक्ष लक्षण प्रस्तावना ग्रन्थ विभाग ९-६४ ज्ञान का आत्मवेदिख परोक्ष ज्ञानवादका खण्डन ३९-४१ दर्शन ज्ञानकी साकारता ४२-४३ दर्शन की परिभाषा बौद्धाभिमत साकारवादकी मीमांसा ४३-४४ जैन दर्शन की देन ज्ञान अर्थको जानता है स्याद्वाद बाह्य अर्थका सद्भाव स्यात् शब्द का अर्थ अर्थ सामान्यविशेषात्मक और द्रव्यप्रो. बलदेव उपाध्याय के मत की आलोचना ___ पर्यायात्मक है ४६-४७ डॉ. देवराज के मत की समीक्षा बुद्धके शून्य निर्वाणकी समीक्षा ४६-४७ महापंडित राहुल सांकृत्यायन के मत की जैनदर्शनकी पदार्थ व्यवस्था ४९-५३ समालोचना गुण और धर्म बुद्ध और संजय विशदज्ञान प्रत्यक्ष सप्तभंगी परपरिकल्पित प्रत्यक्षलक्षणनिराम श्री सम्पूर्णानन्द के मत की समीक्षा मानस प्रत्यक्ष निराकरण अनेकान्त दर्शन का सांस्कृतिक आधार स्वसंवेदन प्रत्यक्ष खण्डन सर राधा कृष्णन् के मत की समीक्षा बौद्धसम्मत विकल्प लक्षणका निराय प्रो. हनुमन्तराव के मत की आलोचना सांख्य और नैयायिकके प्रत्यक्ष लक्षणका निरास ५६ विषय-परिचय प्रत्यक्षके भेद ग्रन्थ का नाम ३२ परमार्थ प्रत्यक्ष न्यायविनिश्चय की अकलङ्क कर्तृता ३२ ग्रन्थकार विभाग प्रन्थगतप्रमेय ३२-३३ अकलङ्कके समयके सम्बन्धमें कारिका संख्या वादिराजसूरि (प्रेमीजी द्वारा लिखिन) न्यायविनिश्चयविवरण का परिचय ३४.३६ प्रन्धकी विषय सूची ६५.६६ प्रत्यक्ष परिच्छेद का विषय ३६ मूलग्रन्थ प्रमाण के भेद ३७ | शुद्धिपत्रPage Navigation
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