________________ फेब्रुआरी 2011 200 अनुसन्धान-५४ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग-२ by Hiradharma, a disciple of Jinalabhasuri of the Kharataragaccha, when the suri was Jinaharsasuri). VS 1901: samvac-candrambara-nidhi-vasundhara 1901 pramite hayane srimacChalivahana-bhubhsd-vinyasta-sasta-sake 1766 pravarttamane masottama-Pausa-mase subhe valaksa-pakse rakayam 15 karmavatyam suracarya-vasare pusya-naksatre ... sriRatalama-pattane ... (Vinayasagar No. 2044; image of Ajitanatha in the Baba Sa. temple, Ratlam = Vinayasagar No. 2058, image of Neminatha in the same temple). VS 1920: ... sriman-nrpati Vikramaditya-samayat samvatsare kham-nayanamkendu-mite (1920) pravarttamane Sake jnanasiddhi-muni-candra-pramite (1785) masottama-mase Maghamase subhe sukla-pakse gunendu (= 12+1 = 13)-mitayam karmavatyam sanivare subha-muhurte ... (Vinayasagar No. 2291; stone-slab in the Sethji temple, Bundi), cf. also Vinayasagar Nos. 2299, 2304, 2307, 2308: Magha sukla 13 karmavatyam. - In other inscriptions of the same temple, of the same date tithau instead of karmavatyam. माहिती : नवां प्रकाशनो 1. पटदर्शन (शत्रुञ्जयतीर्थमाहात्म्यविषयक सचित्र ग्रन्थ). प्रयोजको : डॉ. कल्पना के. शेठ अने प्रा. नलिनी बलबीर; प्र. जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय, लाडनूं, ई. 2010 'जैन विश्व भारती'ना ग्रन्थागारमा वि.सं. 1859 नो आलिखित एक कागळ-पट छे, जेनी लम्बाई 12 मीटर छे. आ पट सचित्र छे. तेमां 24 तीर्थंकरोनां चित्रो छे, अने हरेक चित्र पछी ते ते तीर्थंकर, तेमनी धर्मदेशनानु, तेमना द्वारा वर्णवायेल शत्रुञ्जय तीर्थना महिमानुं वर्णन लखेल छे. आ वर्णनमां शत्रुञ्जयने लगती विविध वातो, प्रसंगो, कथानको पण वणी लेवायां छे. सद्भाग्ये आ पट अखण्ड स्थितिमां प्राप्त छे. ते पं. केसरविजय द्वारा अगस्तपुरमा आलेखायेल छे. प्रस्तुत प्रकाशनमा सर्वप्रथम एकेक तीर्थंकरखें चित्र, ते पछी तेमनी साथे सम्बन्ध धरावता लखाणवाळा अंशना फोटा छापेल छे. ते पछी ते फोटामां वंचाता लखाणनी असल वाचना आपवामां आवी छे. त्यारबाद क्रमशः तेनो हिन्दी अनुवाद अने अंग्रेजी लिप्यन्तर आपेल छे. पृ. 98 थी शरु थता बीजा विभागमा पट-वर्णनमां आवती कथाओ हिन्दीमां अपाई छे. ते पछी 'शत्रुञ्जय महिमा', 'शत्रुञ्जयना उद्धार (17)', 'शत्रुञ्जयनां विविध नाम' - आटला विभागो हिन्दीमां छे. ते पछी 'कठिन शब्दार्थ' आपेल छे. तेमां दरेक शब्दना छेडे ह्न एवं चिह्न केम मूकवामां आव्युं हशे ते समजातुं नथी. पछीनां पृष्ठोमां अंग्रेजी विभाग छे, तेमां आ पुस्तकगत लखाण परत्वे समीक्षात्मक अध्ययनो आपेल छे. __ एक सरस, समृद्ध, नमूनारूप प्रकाशन. तेरापन्थनी संस्था आवां चित्रो धरावतुं अने मूर्तिपूजकोने मान्य तीर्थविषयक प्रकाशन करे ए एक आवकारदायक घटना छे. प्राचीन सामग्रीने उजागर करवानी दृष्टिथी ज भले होय, परन्तु ते रीते पण आQ प्रकाशन करवानी तत्परता एक समुदार प्रणालिका निर्माण तो अवश्य करे छे, जेने आवकार आपवो ज जोईए. प्रयोजक बन्ने विदुषी बहेनोए पण आ श्रमसाध्य कार्यने पूरो न्याय मळे तेवी कुशलताथी सिद्ध कर्यु छे. अभिनन्दन. University of Paris-3 Sorbonne-Nouvelle, France nalini.balbir@wanadoo.fr