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नियमसार अनुशीलन
में अन्तर स्वरूप स्थिरता हुई है। जो जीव यथार्थ भानपूर्वक राग को कम करता है, उसे कुदेव - कुगुरु-कुशास्त्र को मानने का परिणाम नहीं रहता है।
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इसप्रकार उक्त दोनों भाव एक दूसरे की अपेक्षा सहित है । इसलिये आत्मा का सच्चा ज्ञान करके मोक्षमार्ग में आरोहण करो अथवा आत्मा भान सहित राग को कम करके मोक्षमार्ग में आरोहण करो 1
जो जीव सच्चा श्रद्धान- ज्ञान करता है; वह राग को घटाकर धीरेधीरे शुद्धता की ओर बढ़ेगा और पूर्ण वीतरागी दशा प्रगट करेगा, इसलिये हे मुमुक्षुओ ! मोक्षमार्ग में आरोहण करो। "
इसप्रकार इस कलश में कहते हैं कि द्रव्यानुयोग के अनुसार सम्यग्दर्शन-ज्ञान प्राप्त करके चरणानुयोगानुसार चारित्र धारण करना चाहिए। यही द्रव्यानुसार चरण है।
आत्मज्ञान के पहले जीवन में सदाचार अत्यन्त आवश्यक है। अष्ट मूलगुणों का पालन और सप्त व्यसनों का त्याग हुए बिना आत्मज्ञान होना असंभव नहीं दुःसाध्य अवश्य है, अत्यन्त दुर्लभ है। इसी को चरणानुयोगानुसार द्रव्य कहते हैं।
प्रश्न : सदाचारी जीवन बिना आत्मज्ञान संभव नहीं - यह कहने में आपको संकोच क्यों हो रहा हैं ?
उत्तर : इसलिए कि भगवान महावीर के जीव को शेर की पर्याय में ऐसा हो गया था; पर यह राजमार्ग नहीं है । राजमार्ग तो यही है कि सदाचारी को ही आत्मज्ञान होता है ॥५६॥
इसके बाद टीकाकार मुनिराज एक छन्द स्वयं लिखते हैं, जो इसप्रकार है -
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(अनुष्टुभ् ) चित्तत्त्वभावनासक्तमतयो यतयो यमम् ।
यतंते यातनाशीलयमनाशनकारणम् ।।१३९॥
१. दिव्यध्वनिसार भाग-४, पृष्ठ-४७०