Book Title: Nitikavya ke Vikas me Hindi Jainmuktak Kavya ki Bhumika Author(s): Gangaram Garg Publisher: Z_Kusumvati_Sadhvi_Abhinandan_Granth_012032.pdf View full book textPage 9
________________ सज्जन परितुछ न करें, मानै गिर गुन भाय । सज्जन पुरुष सब, कलप ब्रष सम थाय । सामाजिक व्यवहार - पारस्परिक मेलजोल से रहने व एक-दूसरे का सम्मान करने से ही अच्छे समाज का निर्माण होता है । नीतिकार बुधजन ने पारस्परिक व्यवहार में उत्तम शिष्टाचार की अपेक्षा की है आवत उठि आदर करै, बोले मीठे बैन । जाते हिलमिल बैठना जिय पावे अति चैन | १४५ | भला बुरा लखिये नहीं आये अपने द्वार । मधुर बोल जस लीजिए, नातर अजस तैयार । १४६ । समाज में व्यवहार करते समय अधिक सरलता की अपेक्षा थोड़ी चतुराई का भाव रखना चाहिएअधिक सरलता सुखद नहीं, देखो विपिन निहार । सीधे विरवा कटि गये, बांके खरे हजार ।।१६५ ।। - बुधजन सतसई नारी- काम की प्रबलता के विरोध के कारण मध्यकालीन काल में नारी के प्रति कटूक्तियाँ अधिक कह दी गई हैं, जिससे नारी की गरिमा हानि हुई है । 'राजमती' और 'चन्दनबाला' के आदर्श चरित्र प्रस्तुत करने वाले जैन काव्य में कटूक्तियाँ अपेक्षाकृत कम हैं। नारी का एक सुखद चित्र जैन कवि साधुराम ने इस प्रकार प्रस्तुत किया है नारी बिना घर में नर भूत सो, नारी सब घर की रखवारी । नारि चषावत है षट् भोजन, नारि दिखावत है सुख भारी । नारी सिव रमणी सुष कारण, पुत्र उपावन कूं परवारी । और कहाय कहा लूं कहूँ तब, सा बड़ी मन रंजनहारी । आर्थिक नीति- भूख, रोजगार, निर्धनता, धन के उपयोग सम्बन्धी उक्तियाँ आर्थिक नीति का अंग हैं । पंचम खण्ड : जैन साहित्य और इतिहास Jain Education International भूख - अध्यात्मसाधना, सदाचार, कुलमर्यादा का पालन भूख की स्थिति में नहीं हो सकता, अतः अच्छे समाज के निर्माण की भावना रखने वाले राष्ट्र-निर्माताओं को सबको 'रोटी' की व्यवस्था करनी चाहिए । 'मनमोहन पंच शती' के रचनाकार छत्रशेष का कथन है तन लौनि रूप हरे, थूल तन कृश करें, मन उत्साह हरै, बल छीन करता । छिमा को मरोरै गही, दिढ़ मरजाद तोरे, अज सहेन भेद करें लाज हरता । धरम प्रवृत्ति जप तप ध्यान नास करें, धीरज विवेक हरै करति अथिरता । कहा कुलकानि कहा राज पावे गुरु, आन क्षुधा बस होय जीव बहुदोष करता । रोजगार – बेरोजगारी का कष्ट आज ही नहीं, मध्यकाल से ही व्यक्ति अनुभव करता रहा है । रोजगार से ही व्यक्ति को समाज और परिवार में प्रतिष्ठा मिलती है । रोजगार बिना यार, यार सों न करें बात, रोजगार बिन नारि नाहर ज्यों धूरि है । रोजगार बिना सब गुन तो बिलाय जाय, एक रोजगार सब, ओगुन को चूर है । रोजगार बिना कछू बात बनि आवै नहीं, बिना दाम आठो जाम, बैठा धाम झूर है । रोजगार बिना नांहि रोजगार पांहि, असो रोजगार येक धर्म कीये पूर हैं ||१७|| निर्धनता का एक भयावह चित्र मनोहरदास ने भी प्रस्तुत किया है— नहीं पावै । भूष बुरी संसार, भूष सबही गुन मोवै । भूष बुरी संसार, भूष सबको मुष जोवै । भूष बुरी संसार, भूष आदर भूष बुरी संसार, भूष कुल भूष गंवावै लाज, भूष न मन रहसि मनोहर हम कहें, भूष बुरी संसार में ॥११॥ साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ For Private & Personal Use Only कान घटावै । राषै कारमें । ४११ QKKAVKAZ www.jainelibrary.orgPage Navigation
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