Book Title: Niryukti Sahitya Ek Parichay
Author(s): Shreeprakash Pandey
Publisher: Z_Yatindrasuri_Diksha_Shatabdi_Smarak_Granth_012036.pdf

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Page 6
________________ . - यतीन्द्र सूरि स्मारकग्रन्थ - जैन आगम एवं साहित्य - सप्तम का मोहसमत्थ परीषहोपसर्ग सहनता, अष्ठम् का निर्वाण चूलिकाओं का परिमाण इस प्रकार है - "पिण्डैषणा" से लेकर अर्थात् अन्तक्रिया एवं नवम का जिनप्रतिपादित अर्थश्रद्धान है। “अवग्रहप्रतिमा" अध्ययन पर्यन्त सात अध्ययनों की प्रथम चूलिका, द्वितीय उद्देशक में पृथ्वी आदि का निक्षेप-पद्धति से विचार - सप्तर सप्तसप्ततिका नामक द्वितीय चूलिका, भावना नामक तृतीय, विमुक्ति करते हुये उनके विविध भेद-प्रभेदों की चर्चाएँ की गई हैं। इसमें नामक चतुर्थ एवं निशीथ नामक पंच चूलिका है।६५९ वध को कृत, कारित एवं अनुमोदित तीन प्रकार का बताते हुए ५. सूत्रकृतांगनियुक्ति अपकाय, तेजस्काय, वनस्पतिकाय, त्रसकाय और वायुकाय इस नियुक्ति में २०५ गाथाएँ हैं। प्रारम्भ में सूत्रकृतांग जीवों की हिंसा के सम्बन्ध में चर्चा की गयी है। शब्द की व्याख्या के पश्चात् अम्ब, अम्बरीष, श्याम, शबल, द्वितीय अध्ययन लोकविजय है, जिसमें कषायविजय को रुद्र, अवरुद्र, काल, महाकाल, असिपल, धनु, कुम्भ, बालुक, ही लोकविजय कहा गया है।६२ वैतरणी, खरस्वर और महाघोष नामक पन्द्रह परमाधार्मिकों के तृतीय अध्ययन शीतोष्णीय है, जिसमें शीत व उष्ण पदों नाम गिनाए गए हैं। गाथा ११९ में आचार्य ने ३६३ मतान्तरों का का निक्षेप-विधि से व्याख्यान करते हुए स्त्री-परीषह एवं सत्कार निर्देश किया है, जिसमें १८० क्रियावादी, ८४ अक्रियावादी, ६७ परीषह को शीत एवं शेष बीस को उष्णपरीषह बताया गया है।६३ अज्ञानवादी और ३२ वैनयिक है। इसके अतिरिक्त शिष्य और सम्यक्त्व नामक चतुर्थ अध्ययन के चारों उददेशकों में शिक्षक के भेद-प्रभेदों की भी विवेचना की गई है।७१ क्रमशः सम्यक् - दर्शन, सम्यक् - ज्ञान, सम्यक - तप एवं ६. दशाश्रतस्कन्धनियीक्त सम्यक् - चारित्र का विश्लेषण किया गया है।६४ यह नियुक्ति दसाश्रुतस्कन्ध नामक छेदसूत्र पर है। प्रारम्भ पंचम अध्ययन लोकसार के छः उद्देशकों में यह बताया में निर्यक्तिकार ने दशा, कल्प और व्यवहार श्रत के कर्ता गया है कि सम्पूर्ण लोक का सार धर्म, धर्म का सार ज्ञान, ज्ञान सकलश्रतज्ञानी श्रतकेवली आचार्यभद्रबाह को नमस्कार किया का सार संयम और संयम का सार निर्वाण है।६५ है।७२ तदनन्तर दस अध्ययनों के अधिकारों का वर्णन किया है। __धूत नामक षष्ठ अध्ययन के पाँच उद्देशक हैं, जिसमें प्रथम अध्ययन असमाधिस्थान की नियुक्ति में द्वव्य व भाव वस्त्रादि के प्रक्षालन को द्रव्य-धूत एवं आठ प्रकार के कर्मों के समाधि की विवेचना की गई है। द्वितीय अध्ययन शबल की नियुक्ति क्षय को भावधूत बताया गया है। सप्तम अध्ययन व्यवच्छिन्न में चार निक्षेपों के आधार पर शबल की व्याख्या करते हुए अपार है। अष्टम अध्ययन विमोक्ष के आठ उद्देशक हैं। विमोक्ष का से भिन्न अर्थात् गिरे व्यक्ति को भावशबल कहा गया है। नामादि छ: प्रकार का निक्षेप करते हुए भावविमोक्ष के देशविमोक्ष तृतीय अध्ययन आशातना की निर्यक्ति में मिथ्या प्रतिपादन व सर्वविमोक्ष दो प्रकार बताए गए हैं। साधु देशविमुक्त एवं सम्बन्धी एवं लाभ सम्बन्धी दो आशातना की चर्चा की गई है। सिद्ध सर्वविमुक्त है।६७ गणिसम्पदा नामक चतुर्थ अध्ययन में गणि एवं संपदा नवम् अध्ययन उपधानश्रुत में नियुक्तिकार ने बताया है पदों की व्याख्या करते हुए "गणि" व "गुणी" को एकार्थक कि तीर्थंकर जिस समय उत्पन्न होता है, वह उस समय अपने बताया गया है। आचार को प्रथम गणिस्थान दिया गया है, क्योंकि तीर्थ में उपधानश्रुताध्ययन में तपः कर्म का वर्णन करता है।६८ इसके अध्ययन से श्रमणधर्म का ज्ञान होता है। संपदा के द्रव्य व उपधान के द्रव्योपधान एवं भावोपधान दो भेद किए गए हैं। भाव दो भेद करते हए आचार्य ने शरीरसंपदा को द्रव्यसंपदा एवं द्वितीय श्रुतस्कन्ध - प्रथम श्रुतस्कन्ध में जिन विषयों पर आचारसंपदा को भावसंपदा का नाम दिया है।७३ । चिन्तन किया गया है, उन विषयों के सम्बन्ध में जो कुछ चित्तसमाधिस्थान नामक पंचम अध्ययन की निर्यक्ति अवशेष रह गया था या जिनके समस्त विवक्षित अर्थ का अभिधान में उपासक एवं प्रतिमा का निक्षेपपर्वक विवेचन किया गया है। न किया जा सका, उसका वर्णन द्वितीय श्रुतस्कन्ध में है। इसे नित इस चित्त व समाधि की चार निक्षेपों के आधार पर व्याख्या करते अग्रश्रुतस्कन्ध भी कहते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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