Book Title: Nirvan Upnishad
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 16
________________ निर्वाण उपनिषद सकते हैं। आग के साथ जूझना खतरनाक है। राख को आप बदल सकते हैं, आग आपको बदल देगी, मिटा देगी। ___ तो उपनिषद के ऋषि तो आग से खेल रहे थे। लेकिन बुद्ध के समय तक आते-आते राख रह गई। और जब बुद्ध ने फिर आग की बात की, तो स्वाभाविक कि जो राख की रक्षा कर रहे थे और जो राख को ही आग कह रहे थे. उनको बद्ध दश्मन मालम पडे हों। यह स्वाभाविक है। क्योंकि जब फिर आग जला दी जाए, तो राख के मालिक बड़ी कठिनाई में पड़ जाते हैं। ___ जीसस ने वही कहा, जो यहूदी ज्ञाताओं ने कहा था। लेकिन जीसस को यहूदी पंडितों ने ही सूली पर लटका दिया। ___ यह भी जानकर हैरानी होगी कि आज तक धर्म का विरोध करने वाले अधार्मिक लोग नहीं हैं। धर्म का विरोध तो सदा ही तथाकथित धार्मिक, सो-काल्ड रिलीजस लोग करते हैं। धर्म का विरोध अधार्मिक नहीं करते हैं, धर्म का विरोध तथाकथित धार्मिक लोग करते हैं। बुद्ध का विरोध भारत के नास्तिकों ने नहीं किया, बुद्ध का विरोध भारत के तथाकथित आस्तिकों ने किया। कब हम यह समझ पाएंगे, कहना कठिन है। कब हमें यह समझ में बात आएगी कि सत्य सा एक है, नई-नई अभिव्यक्तियां होती हैं उसकी, लेकिन सत्य के प्राण सदा एक हैं। इस निर्वाण उपनिषद में, जिसका बुद्ध से कुछ लेना-देना नहीं है, बुद्ध ने जो भी कहा है, उसका सब सार है। मेरे एक मित्र अभी चीन होकर वापस लौटे हैं। इधर मैं लाओत्से के ऊपर कुछ चर्चा कर रहा था। तो उन मित्र ने मुझे आकर कहा कि आप लाओत्से पर चर्चा कर रहे हैं। मैं चीन गया था तो मैंने चीन के एक पंडित से पूछा कि लाओत्से के संबंध में तुम्हारा क्या खयाल है? तो उसने कहा कि ही वाज़ करप्टेड बाई योर उपनिषद्स। तुम्हारे उपनिषदों ने हमारे लाओत्से को खराब किया। ___यह बात बड़ी अर्थपूर्ण है। सच तो यह है कि जिस अर्थ में उसने कहा है खराब किया, उस अर्थ में कि हम सब अच्छे लोग हैं। इस दुनिया में जब भी कोई आदमी खराब हुआ है, तो उपनिषदों का हाथ रहा है। खराब उसी अर्थ में, जिस अर्थ में बुद्ध खराब होते हैं, महावीर खराब होते हैं, सुकरात खराब होता है, जीसस खराब होते हैं। इस जमीन पर जब भी कोई आदमी खराब हुआ है, तो ही वाज़ करप्टेड बाई उपनिषद्स। मैंने उन मित्र से कहा कि लाओत्से अकेला, तो आप गलती में हैं। जब भी कोई आदमी जमीन पर खराब हुआ है, इधर कोई पांच हजार वर्षों के ज्ञात इतिहास में, तो उपनिषद ही उसका कारण थे। ____ असल में उपनिषदों ने जो भी शाश्वत है, उसे इतने गूढ़ता से कह दिया है कि कई बार ऐसा लगता है कि क्या उपनिषदों से इंचभर भी यहां के क्या उपनिषदों से इंचभर भी यहां-वहां हटकर कछ और कहा जा सकता है? क्या उपनिषदों का किसी तरह परिष्कार हो सकता है? कैन दे बी इंप्रूव्ड? तो शक होता है, होना बहुत मुश्किल मालूम होता है। संदिग्ध मालूम होता है। कोई उपाय नहीं मालूम पड़ता। और यह एक बड़ा भारी कारण बना भारत की परेशानी का। उपनिषदों ने सत्य को इतनी शुद्धतम भाषा में कह दिया कि उसमें परिष्कार करना मुश्किल पड़ा। 76

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