________________ निर्ग्रन्थ-सम्प्रदाय निन्थ पन्थ न था। अतएव सिद्ध है कि बुद्ध ने थोड़े ही समय के लिए क्यों न हो पर पार्श्वनाथ के निर्ग्रन्थ-संप्रदाय का जीवन व्यतीत किया था। यही सबब है कि बुद्ध जब निग्रन्थ संप्रदाय के प्राचार-विचारों की समालोचना करते हैं तब निग्रन्थ संप्रदाय में प्रतिष्ठित ऐसे तप के ऊपर तीव्र प्रहार करते हैं / और यही सबब है कि निग्रन्थ सम्प्रदाय के प्राचार और विचार का ठीक-ठीक उसी सम्प्रदाय की परिभाषा में वर्णन करके वे उसका प्रतिवाद करते हैं। महावीर और बुद्ध दोनों का उपदेश काल अमुक समय तक अवश्य ही एक पड़ता है। इतना ही नहीं पर वे दोनों अनेक स्थानों में बिना मिले भी साथ-साथ विचरते हैं, इसलिए हम यह भी देखते हैं कि पिटकों में 'नातपुत्त निग्गंठ' रूप से महावीर का निर्देश आता है। प्राचीन आचार-विचार के कुछ मुद्दे ऊपर की विचार भूमिका को ध्यान में रखने से ही आगे की चर्चा का वास्तविकत्व सरलता से समझ में आ सकता है। बौद्ध पिटकों में आई हुई चर्चाओं के ऊपर से निम्रन्थ सम्प्रदाय के बाहरी और भीतरी स्वरूप के बारे में नीचे लिखे मुद्दे मुख्यतया फलित होते हैं--- १--सामिष-निरामिष-श्राहार-[खाद्याखाद्य-विवेक २-अचेलत्व-सचेलत्व ३-तप ४-आचार-विचार ५--चतुर्याम ६–उपोसथ-पौषध ७-भाषा-विचार ८-त्रिदण्ड ६-लेश्या-विचार 10. सर्वज्ञव इन्हीं पर यहाँ हम ऐतिहासिक दृष्टि से ऊहापोह करना चाहते हैं। 13. दीप० सु० 2 / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org