Book Title: Nirayavalika Aadi Sutratray Author(s): Dharmchand Jain Publisher: Z_Jinavani_003218.pdf View full book textPage 2
________________ 1312 ...... जिनवाणी- जैनागम-साहित्य विशेषाङक | मारेगा, ऐसा सोचकर वह स्वयं कालकूट विष जो कि मुद्रिका में था, उसे खाकर अपने प्राणों का अंत कर लेते हैं। कुणिक अपनी राजधानी राजगृह से त्वदलकर चम्पानगरी कर लेते हैं,वहाँ पर भगवान महावीर का पदार्पण होता है तथा राजा श्रेणिक की रानियाँ एवं कूणिक की छोटी माताएँ अपने पुत्र काल, सुकाल आदि कुमारों का युद्ध में प्राणान्त हो जाने के समाचार भ. महावीर के श्रीमुख से सुनती हैं, तथा संसार की असारता एवं क्षणभंगुरता को जानकर वे माताएँ दीक्षित हो जाती हैं। कर्मों को काटकर मुक्त हो जाती हैं, इन सब बातों का बहुत ही मार्मिक ढंग से सरल भाषा में विवरण प्रथम वर्ग में प्रस्तुत किया गया है। राजा श्रेणिक के छत्तीस पुत्र होने का जैन साहित्य में उल्लेख मिलता है। उनमें से जाली. मयाली, उवयाली, पुरिससेण, वारिसेण आदि २३ राजकुमारों के साथ मेघकुमार और नन्दोसेन ने भी श्रमण दीक्षा अंगीकार की। ग्यारह राजकुमारों ने साधना पथ स्वीकार नहीं किया और वे मृत्यु को प्राप्त कर नरक में उत्पन्न हुए। महाशिला कण्टक संग्राम निरयावलिका के प्रथम वर्ग में महाशिला कण्टक संग्राम नामक युद्ध का भी विस्तार से वर्णन किया गया है। पिता की मृत्यु के पश्चात् कणिक चम्पानगरी का राजा बन गया। अपने लघु भ्राता हल्ल–वेहल्ल कुमार को सेचनक हाथी और अठारहसरा हार राजा श्रेणिक ने ही दे दिये थे , जिनकी कीमत आधे राज्य के बराबर मानी जाती थी। दोनों भाई हाथी और हार से आनन्दक्रीड़ा का अनुभव कर रहे थे। इसके अनन्तर कूणिक की महारानी पद्मावती के मन में ईर्ष्या व लोभ जागना, कूणिक को हार--हाथी लेने के लिये बार-बार प्रेरित करना. हल्ल–वेहल्ल कुमार का डर के मारे अपने नाना चेटक की शरण में जाना, कुणिक द्वारा युद्ध की चेतावनी देना, चेटक द्वारा शरणागत की रक्षा एवं न्याय की रक्षा करने की प्रतिज्ञा दोहराना, अन्तिम परिणाम महाशिला कण्टक संग्राम होना, इस युद्ध में कणिक के दसों लघु - भ्राता काल कुमार, सुकाल कुमार आदि का महाराजा चेटक के अचूक बाणों से प्राणान्त होकर चौथी नरक में गमन करना, वहाँ से आयु पूर्ण कर महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर मोक्ष में जाने का वर्णन किया गया है। कल्पावतंसिका (कप्पवडंसिया)। इस सूत्र में राजा श्रेणिक के दस पौत्रों अथवा काल, सुकाल कुमार आदि दस राजकुमारों के दस पुत्रों का वर्णन किया गया है। इस सूत्र में ऐसे दस राजकुमारों का वर्णन है जो कल्प देवलोकों में जाकर उत्पन्न हुए, इसी कारण इस सूत्र का नाम कल्प+अवतंसिका= कल्पावतंसिका रखा गया है। इस उपांग में कुल दस अध्ययनों में पद्म, महापद्म, गद्र, सुभद्र, पट्मभद्र, पट्मसेन, पद्नगुल्म, नलिनीगुल्म, आनन्द और नन्दन इन दस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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