Book Title: Nikshepvad Ek Anvikshan
Author(s): Rameshmuni
Publisher: Z_Munidway_Abhinandan_Granth_012006.pdf

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Page 1
________________ निक्षेपवाद : एक अन्वीक्षण 0 श्री रमेश मुनि शास्त्री विचार प्रवाह को प्रवाहित करने के लिए भाषा का माध्यम आवश्यक ही नहीं अपितु अनिवार्य है। जब मानव के मानस सागर में मावों की लहरें लहराने लगती हैं, तब उन लहरों का प्रकटीकरण करने के लिए अगर भाषा का परिधान न पहनाया जाये तो वे लहरें अप्रकट दशा में संस्थित हो जाती हैं। अतः भावाभिव्यक्ति के लिए भाषा का माध्यम अत्यन्त अपेक्षित है। भाषा शब्दों से बनती है। एक ही शब्द के अनेक अर्थ होते हैं। कभी-कभी ऐसा भी बनाव बन जाता है-वक्ता के विवक्षित अर्थ को न समझने के कारण अनर्थ हो जाता है। एतदर्थ अनर्थ का निवारण करने के लिए निक्षेप का निरूपण है। यह अनेक अर्थों को प्रयोजनवशात् एवं प्रसंगवशात् अभिव्यक्त करने की सुन्दर प्रक्रिया प्रदान करता है। निक्षेप की परिभाषा अर्थ को अभिव्यक्ति देने के लिए शब्द में अर्थ का आरोप करना। निक्षेप का पर्यायवाचक शब्द न्यास है। प्रकरणादिवश अप्रतिपत्ति आदि का निवारण कर यथास्थान नियुक्त करने के लिए शब्द और अर्थ की रचना विशेष को निक्षेप कहा है ।२ नामादि भेदों का निक्षेपण करना व्यवस्थापित करना निक्षेप है।3 लक्षण व विधान से अधिगम अर्थ का विस्तार के साथ निरूपण करने को निक्षेप कहा है।४ उपक्रम से समीप में लाए गये व्याचिरव्यासित शास्त्र में नाम आदि का न्यास करने को निक्षेप कहा है। निक्षेपों का वर्गीकरण जिस प्रकार आचार्यवर्य श्री सिद्धसेन ने नयों के लिए भेद-प्रभेद के सम्बन्ध में चिन्तन करते हुए कहा-जितने भी वचन मार्ग हो सकते हैं उतने ही नय हैं । कारण कि चेतन हो या अचेतन हो इस विराट विश्व का प्रत्येक पदार्थ अनन्त गुण-धर्मों का अखण्ड पिण्ड है। प्रत्येक वस्तु १ (क) न्यवसं न्यसत इति वा न्यासो निक्षेपः । -राजवातिक (ख) न्यासो निक्षेपः । -तत्त्वार्थभाष्य १५ २ प्रकरणादिवशेनाप्रतिपश्यादिव्यवच्छदेक यथास्थानविनियोगाय शब्दार्थरचनाविशेषा निक्षेपाः । -जैनतर्क भाषा ३ निक्षिप्यते नामादि भेदैर्व्यवस्थाप्यते अनेनास्मिन्नस्मात इति निक्षेपः । -अनुयोगद्वारवृत्ति ४ विस्तरेण लक्षणतो विधानतश्चाधिगमार्थो न्यासो निक्षेपः । -तत्त्वार्थभाष्य उपक्रमानितव्याचिरव्यासित शास्त्रनामादि न्यसनं निक्षेपः । ६ सन्मति तर्क ३, ४७ । ७ अनन्तधर्मात्त्वकमेव तत्त्वम् । -स्थाद्वाद मञ्जरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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