Book Title: Neminath evam Rajmati se Sambandhit Hindi Rachnaye
Author(s): Vedprakash Garg
Publisher: Z_Deshbhushanji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012045.pdf

View full book text
Previous | Next

Page 3
________________ नेमिनाथ जी' के माध्यम से भारतीय जीवन में अहिंसक वृत्ति का ऐतिहासिक परिधि के अन्तर्गत प्राप्त होने वाला यह उत्तम उदाहरण है। नेमिनाथ और राजुल के इस वैवाहिक प्रसंग को लेकर जैन मुनियों और विद्वानों ने विपुल साहित्य का निर्माण किया है। राजमती के विरह की कल्पना को लेकर साहित्य के 'चउपई' 'विवाहला' 'बेलि', 'रासो', 'फाग' आदि विभिन्न काव्य-रूपों में पचासों नारहमासे, संकड़ों गीत, भजन, स्तवन, स्तुति आदि रचे गये। उन दोनों से संबंधित सभी जैन काव्य विरह काव्य हैं। उनमें राजुल के विरह का वर्णन है। राजुल विरहिणी थी उस पति की जो सदा के लिए वैराग्य धारण कर तप करने गिरिनार पर्वत पर चला गया था। अतः उसका विरह काम का पर्यायवाची नहीं था। उसमें विलासिता की गंध भी नहीं है। भगवान् नेमिनाथ और सती राजुल के प्रसंग को लेकर शृगार रस की रचनायें भी जैन कवियों ने रची, परन्तु उनमें संयमपूर्ण मर्यादा का ही पुट देखने को मिलता है। उनका उद्देश्य भी मानव को आत्मज्ञानी बनाने का था। इसीलिए उन दोनों को लेकर लिखे गये मंगलाचरण सात्विकता से संयुक्त हैं। साहित्य-शास्त्र ग्रन्थों में विरह की जिन दशाओं का निरूपण किया गया है, वे सभी राजुल के जीवन में विद्यमान हैं। विरह में प्रिय से मिलने की उत्कण्ठा, चिन्ता अथवा प्रियतम के इष्ट-अनिष्ट की चिन्ता, स्मृति, गुण-कथन आदि सभी नैसर्गिक ढंग से दिखलाये गये हैं। भगवान् नेमिनाथ का चरित्र आरम्भ से ही कवियों के लिए अधिक आकर्षक रहा है। इनके जीवन पर आधारित विपुल एवं विशिष्ट साहित्य उपलब्ध है । नेमिनाथ एवं राजुल के विवाह प्रसंग और दीक्षित होने के बाद राजमती को परीक्षा का विशिष्ट प्रसंग प्राचीन जैनागम 'उत्सराध्ययन सूत्र' के २२ वें रहनेमिज अध्ययन' में पाया जाता है। यह सर्वाधिक प्राचीन और प्रसिद्ध ग्रन्थ है। इसके ही कथानक आकार से जैन पुराणों का प्रणयन हुआ है, जिनमें जिनसेन प्रथम का 'हरिवंश पुराण' तथा गुणभद्र का 'उत्तरपुराण' नेमिनाथ जी के जीवन-वृत्त से संबंधित मुख्य स्रोत हैं । इन मुख्य आधारग्रन्थों के अतिरिक्त और भी उपजीव्य ग्रन्थ हैं, जिनमें नेमि-चरित की प्रमख रेखाओं के आधार पर भिन्न-भिन्न शैली में उनके जीवनवृत्त का निर्माण किया गया है। यही कारण है कि जनसाहित्य में नेमिनाथ-राजमती के उपाख्यान से संबंधित अनेक ग्रन्थ उपलब्ध हैं। नेमि प्रभु एवं राजुल के लोकविख्यात चरित पर आधारित प्राकृत, संस्कृत एवं अपभ्रंश में अनेक ग्रन्थों का प्रणयन विभिन्न काव्यरूपों में हुआ है। इन भाषाओं के काव्यरूपों की सामान्य पृष्ठभूमि को रिक्थ रूप में ग्रहण करते हुए प्रारम्भ से ही देश भाषा हिन्दी में भी इस प्रसंग-विशेष को लेकर अनेक रचनायें काव्यबद्ध हुई । यद्यपि प्राकृत, संस्कृत तथा अपभ्रंश के अनेक कवि इस प्रसंग को अपने काव्यों का विषय बना चुके थे, किन्तु हिन्दी रचनाकारों को भी पूर्व कवियों की तरह ही यह कथानक अत्यधिक प्रिय एवं रुचिकर रहा है। हिन्दी साहित्य के आदि काल से ही नेमिनाथ एवं राजुल के इस प्रसंग विशेष से संबंधित विभिन्न काव्यरूपों में निबद्ध रचनायें मिलनी प्रारम्भ हो जाती हैं और यह कथानक-परम्परा अपने अक्षुण्ण रूप में आधुनिक काल तक पहुंचती है। वर्तमान काल में इस रोचक प्रसंग को लेकर पद्यात्मक रचनाओं के साथ-साथ गद्यात्मक रचनायें भी लिखी गई हैं। इन सभी रचनाओं का कथानक परम्परागत रूप में प्राप्त वही सुप्रसिद्ध लोकप्रिय चरित है, जिसमें २२ वें तीर्थंकर नेमिनाथ जी का जीवन अत्यधिक रोचक ढंग से निबद्ध है तथा राजमती की विरहवेदना का करुण कथन हआ है। इन समस्त कृतियों में जिनेश्वर नेमिनाथ काव्य-नायक हैं। उनका सम्पूर्ण चरित्र पौराणिक परिवेश में आबद्ध है और विरक्ति के केन्द्रबिन्दु के चारों ओर घूमता है । वे वीतरागी हैं । यौवन की मादक अवस्था में भी वैषयिक सुख उन्हें आकृष्ट एवं अभिभूत १. २२वें तीर्थकर नेमिमाष के नाम पर नेमि संप्रदाय भी प्रचलित हुमा पा जो कभी समूचे दक्षिण भारत में फैला था किन्तु कालान्तर में वह नाथ संप्रदाय में मन्तमुक्त हो गया। वैसे उसका नाममात्र का प्रचार एवं उल्लेख भव तक मिलता है। २. तीर्थंकर होने के नाते नेमिनाथ विषयक तथा महासती के नाते राजुल संबंधी स्तवन, मंगलाचरण मादि स्तुतिपरक विभिन्न रचनोल्लेख भी पर्याप्त मात्रा मे मिलते है। किन्तु इस लेख में मात्र ऐसे उल्लेख को शामिल नहीं किया गया है। ३. भारत की अन्य भाषामों में भी नेमिनाथ एवं राजुल के इस वैवाहिक प्रसंग को लेकर प्रचुर मात्रा में साहित्य-सर्जन हुमा है । इस प्रसंग-विशेष को लेकर गीतिकाव्य अधिक रचे गये, यद्यपि प्रबंध काम्य भी रचे गये किन्तु उनकी संख्या मल्प है। हिन्दी के जैन खण्डकाव्य अधिकांशतया नेमि और राजमती की कथा से संबद्ध है। उनके जीवन से संबंधित खण्डकाव्य में प्रेम-निर्वाह को पर्याप्त अवसर मिला है। उन्हें लेकर बैन कवि प्रेमपूर्ण सारिवक भावों की अनुभूति करते रहे हैं। १५२ प्राचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org .

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7