Book Title: Neminahacariya Part 2
Author(s): Haribhadrasuri, H C Bhayani, Madhusudan Modi
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 14
________________ १३९ नवमभवि हरिवंसवुत्तंतु [१९३८] एत्य-अंतरि पुरिहि चंपाए अणहुंत-अंगुब्भविउ चंदकित्ति-अभिहाणु नरवइ । पंचत्तह पत्तु अह फुरिय-दुक्ख-पब्भारि जणवइ ॥ नायर नियहि निवइ-पयह समुचिउ पुरिस-विसेसु । निय-नाणिण तेण वि सुरिण जाणिवि एहु अ-सेसु ॥ [१९३९] नणु न तीरहिं ताव निहणेउ एयाई मिहुणत्तणिण एत्थ जम्मि इय नियय-सत्तिण । तह कीरउ जिण लहहिं वहुय-दुहई अइ-दुट्ठ-चित्तिण ॥ इय चिंतेविणु धणुह-सय. उद्ध त जुयलु करेवि । चंपह उववणि परिमुयइ हरिवरिसह आणेवि ।। [१९४०] तियसस-त्तिण तम्मि उज्जाणि आरोवइ कप्प-दुम भणइ पुरउ नायरह पुणु जह । ससि-संख-सस्थिय-कलस- पउम-कुलिस-लंछियउ एयह ।। नयरिहि सामिउ तुब्भ-कइ हरिवरिसह आणीउ । चिहइ इहु हरि-नामु निय- गुरु-सज्जणहं विणीउ । [१९४१] एह पुणु पिय इमह हरिणि त्ति अभिहाणिण पायडिय इय इमेसि बढेज्ज विणइण । वियरेज्जह भोयणि वि कप्प-तरुहुँ फल स-हिय तेसिण ॥ तह जह स-मइरु केवल जि मंसु एहि भुंजति ।। ता नायर हरिसिय-हियय तं तह पडिवज्जति ।। १९३८. १. अंतरि. __१९४१. ५. The first letter after सहिय is illegible in क. ६. The first letter after स is illegible in क. ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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