Book Title: Naychakra Sara Author(s): Meghraj Munot Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpmala View full book textPage 4
________________ ॥ निवेदन । श्रीमद् देवचन्द्रजी महाराज के बनाये हुवे सभी ग्रन्थ प्रायः द्रव्यानुयोग विषयिक हैं. तथापि इस नयचक्रसार में जैसा षद्रव्य और स्याद्वाद के स्वरूप को प्रतिपादन किया है वैसा अन्य ग्रन्थों में नहीं है. इस छोटे से प्रन्थ में न्यायप्रियता के साथ अन्य दर्शनियों का निगकरण करते हुवे जैन सिद्धान्तों के तत्वों का ऐसा प्रतिपादन किया है कि यह तर्कविषयि सर्व साधारण के लिये अपूर्व प्रन्थ है। पूर्व महर्षियों के बनाये हुवे-सम्मतितर्क, नयचक्रवाल, स्याद्वादरत्नाकर, तत्वार्थप्रमाण वार्तिक, प्रमाणमिमांसा, न्यायावतार, अनेकान्तजयपताका, अनेकान्तप्रवेश, प्रमेयरत्नकोष और धर्मसंग्रहणी भादि तर्कशास्त्र विषयिक अनेक बडे २ ग्रन्थ है उन्ही ग्रन्थों को मथन कर के बाल जीवों के हितार्थ उक्त महात्माने इस ग्रन्थ को जिस खूबी के साथ प्रतिपादन किया है वह अपने ढंगपर एक अनोखा ही प्रन्थ है. इस का गुजराती भाषान्तर भी प्रन्थ कर्ताका ही किया हुभा है. ___ ऐसे तार्कीक द्रव्यानुयोग विषयिक ग्रन्थ का एक भाषा से दूसरी भाषा में परिवर्तन करना सामान्यावबोधवाले का काम नहीं है. जो द्रव्यानुयोग का पूर्ण ज्ञाता हो, तर्कशास्त्र पढा हो वही इस की अच्छी तरह व्याख्या करके समझा सकता है. इस प्रन्थ को यथार्थतया हिन्दी अनुवाद करने के लिये में असमर्थ हूं तथापि केवल अपनी बोधवृद्धि के लिये मन की अति उत्कंठा से प्रेरित होकर यह अनुवाद किया है. संभव है कि अल्पज्ञता के कारण कई जगह गलतीयां रहगई हो इसके लिये तत्वरसिक पाठकोंसे नम्र निवेदन है कि वे क्षमाप्रदान करके सुधार कर पढने की कृपा करेंगे सुज्ञेषु किंबहुना। ___ भवदीय-मेघराज मुणोत-फलोधी.Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 ... 164