Book Title: Navtattvasangraha tatha Updeshbavni
Author(s): Atmaramji Maharaj, Hiralal R Kapadia
Publisher: Hiralal R Kapadia

View full book text
Previous | Next

Page 11
________________ ग्रन्थप्रणेतानी जीवनरेखां वेदान्तादि दर्शनशास्त्रोन अध्ययन करवानी एमने सोनेरी तक मळी. विविध दार्शनिक साहित्य तेमज व्याकरणादिनो अभ्यास थतां यथार्थ सत्यनुं एमने दर्शन थयु. आथी खोटी रीते मूर्तिपूजादिनो अपलाप करनारा ढुंढक मतनो एमणे परित्याग कर्यो. केटलाक कदाग्रही स्थानकवासी साधुओए अने गृहस्थोए एमने हेरान करवामां कच्चास न राखी, परंतु ए बधां कष्टो तेओ समभावे निर्भयतापूर्वक सहन करी गया, केमके "सत्ये नास्ति भयं कचित्" ए वाक्य उपर एमने पूर्ण श्रद्धा हती. एमने एवो अटल विश्वास हतो के जो हुं साचे मार्गे चालु छ तो समग्र ब्रह्माण्डमां एवी कोइ शक्ति नथी के जे मने नाहक सतावी शके. स्थाने स्थाने जैन धर्मनो विजयडंको वगाडतां अने अनेक स्त्रीपुरुषोने सन्मार्गे दोरवता एओ पंजाबमाथी '१५ साधुओ साथे नीकळ्या अने श्रीअर्बुदाचळ, श्रीसिद्धाचळ (पालीताणा) वगेरे तीर्थोनी यात्रा करी 'अमदावाद'मा वि. सं. १९३२ मां पधार्या. आ समये वेष तो ढुंढक साधुनो हतो. केवळ मुखवस्त्रिका उतारी नांखवामां आवी हती. अहीं गणि श्रीमणिविजय महाराजश्रीना शिष्य मुनिरत्न गणि श्रीबुद्धिविजय (बुटेरायजी महाराजश्री) पासे एमणे तपागच्छनो वासक्षेप लीधो अने एमने गुरु तरीके खीकार्या. आ समये एमनी उमर ३९ वर्षनी हती. दीक्षासमये आनन्दविजय एवं एमनु नाम राखवामां आव्यु, परंतु आत्मारामजी ए ज पूर्व- नाम विशेषतः प्रचलित रह्यु. एमनी साथे आवेला १५ साधुओ एमना शिष्य अने प्रशिष्य बन्या. 'अमदावाद'थी विहार करी विविध तीर्थस्थानोनी यात्रा करता, मतांतरीय विद्वानो साथे शास्त्रार्थ करी तेमने निरुत्तर करता, जैन शासननी विजयपताका देशे देशे फरकावता, अने स्याद्वादमार्गना यशःपुंजनो विस्तार करता तेओ वि. सं. १९४३मां 'सिद्धाचळजी' आवी पहोंच्या. बहु जनोनी प्रार्थनाथी एमनुं चातुर्मास अहीं ज थयु. एमनो सत्यपूर्ण अने सारगर्भित उपदेश, एमर्नु निर्मळ अने निष्कलंक चारित्र, एमनी अद्भुत प्रतिभा, विश्वधर्म बनवानी योग्यतावाळा जैन धर्मना प्रचार माटेनी एमनी तालावेली इत्यादि एमना सद्गुणोथी आकर्षाइने एमना दर्शन-वन्दनार्थे तथा तीर्थयात्राना निमित्ते विविध देशोमांथी आवेला लगभग ३५००० सज्जनो समक्ष देवोने पण दुर्लभ अने अनुमोदनीय 'आचार्य' पदवी श्रीजैन संघे एमने उत्साह अने आनंदपूर्वक अी अने एमनुं श्रीविजयानन्दसूरि एवं नाम स्थाप्यु. वि. सं. १९४५ मा एमणे 'महेसाणा'मां चातुर्मास कर्यु. आ समये संस्कृतज्ञ डॉ. ए. एफ. रुडॉल्फ हॉर्नेल नामना गौरांग महाशये एमने जैन धर्म संबंधी १ एमनां नामो नीचे मुजब छे (१) विश्नचंद (लक्ष्मीविजय), (२) चंपालाल (कुमुदवि०), (३) हुकमचंद (रंगवि०), (४) सलामतराय (चारित्रवि०), (५) हाकमराय (रत्नवि०), (६) खूबचंद (संतोषवि०), (७) घनैयालाल (कुशलवि०), (6) तुलशीराम (प्रमोदवि.), (७) कल्याणचंद (कल्याणवि.), (१०) नीहालचंद (हर्षवि०), (११) निधानमल (हीरवि०), (१२) रामलाल (कमलवि.), (१३) धर्मचंद (अमृतवि०), (१४) प्रभुदयाल (चंद्रवि०) अने (१५) रामजीलाल (रामवि०). अत्र कौंसमां सूचवेलां नामो संवेगी दीक्षा लीधा बाद पाडवामां आव्यां हता. - २ ज्यारे एओ उपदेश आपता त्यारे कोइ प्रश्न करतो ते तेओ पूर्ण गंभीरताथी सांभळता अने तेनो शांत चित्ते संतोषकारक उत्तर आपता. प्रश्नकार खधर्मी होय के परधर्मी होय, जिज्ञासु होय के टिखली होय परंतु तेनुं दिल दुभाव्या विना तेओ तेने संतोष पमाडी निरुत्तर बनावता. आ संबंधमा जुओ सरस्वती मासिक (भा. १६, खण्ड १) तेमज एमांथी उद्धृत संक्षिप्तजीवन (पृ. ११-१५) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 ... 292