Book Title: Natikanukari Shadbhashamayam Patram
Author(s): Vinaysagar
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 5
________________ March-2004 क्रियाकलापों का तथा जनरजंन का वर्णन करते है । इन्द्र, सूर्य, चन्द्र, बृहस्पति आदि समस्त देवताओं की उपस्थिति में उर्वशी के अनुरोध पर सरस्वती आगे का वर्णन प्राकृत, सौरसेनी, मागधी, पैशाची आदि भाषाओं में मधुर शब्दावली में नगर, राजा, प्रधान इत्यादि के कार्य-कलापों का प्रसादगुण युक्त वर्णन करती है । इस प्रकार देवसभा को अनुरंजित कर लेखक महाराजा, राजकुमार और आनन्दराम को धर्मलाभ का आशीर्वाद देते हुए पत्र पूर्ण करता है । यह पत्र मिगसर सुदि तीज सम्वत् १७८७ आनन्दराम के कुतूहल और उसको प्रतिबोध देने के लिए यह पत्र लिखा गया है। प्राय: जिनेश्वर भगवान् की स्तुति में ही जैन कवियों ने अनेक भाषाओं का प्रयोग किया । किन्तु व्यक्ति विशेष के लिए पत्र के रूप में अनेक भाषाओं का प्रयोग अभी तक देखने में नहीं आया, इस कारण यह कृति अत्यन्त महत्त्व की है। विक्रमनगरीयप्रधानश्रीआनन्दरामं प्रति वेनातटात् श्री रूपचन्द्र (रामविजयोपाध्याय) प्रेषितम् नाटिकानुकारि षड्भाषामयं पत्रम् । ॥०॥ स्वस्तिश्रीसिद्धसिद्धान्ततत्त्वबोधा(ध) विधायिने । अस्तु विद्याविनोदेनात्मानं रमयते सते ॥१॥ कृताधिवसतिः साधुः श्रीमद्वेनातटाश्रमे । षड्भाषो(षा) लेखलीलायां रूपचन्द्रः प्रवर्तते ॥२॥ अथाऽत्र पत्रोपक्रमे कविः सरस्वती सम्भाषते स्वर्गाधिवासिनि सरस्वति मातरेहि, ब्रूहि त्वमेव ननु देवसदोविनोदम् । नाट्येन केन भगवान्मघवानिदानी, सन्तुष्यति स्वहदि भावितविश्वभावः ॥३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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