Book Title: Nari ki Bhumika Vishwa Shanti ke Sandarbh me Author(s): Malti Jain Publisher: Z_Sadhviratna_Pushpvati_Abhinandan_Granth_012024.pdf View full book textPage 2
________________ Dura ... ..... .. .. .. . . ... . ... .inhini i iiiiiiiiiiii साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ) AAAAAAAAAAAAALLLLLLLLLLLLLLLL MARATH L ACL. admini. han.. ............. . I ..... HI ..... ............. .. R OHHHHHHHHHI : आइये, आस्था और आशा के इसी आलोक में हम इतिहास के पृष्ठों को पलटें, वर्तमान पर दृष्टि डालें, तो पायेंगे कि “दया, माया, ममता, मधुरिमा और अगाध-विश्वास" के उमड़ते रत्ननिधि को अपने वक्षस्थल में समेटे, नारी ने सदैव ही संघर्ष और अशान्ति को दूर कर शान्ति और समरसता की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया है। हिन्दी-साहित्य के प्रसिद्ध नाटककार, श्री जयशंकर प्रसाद ने अपने प्रसिद्ध नाटक 'अजातशत्रु" में लिखा है “कठोरता का उदाहरण है पुरुष और कोमलता का विश्लेषण है-स्त्री जाति । पुरुष क्रूरता है तो स्त्री करुणा-जो अन्तर्जगत का उच्चतम विकास है जिसके बल पर समस्त सदाचार ठहरे हुए हैं।" इतिहास साक्षी है, करुणामयी स्त्री ने सदैव पुरुष की क्रूरता का प्रत्युत्तर अपनी सहिष्णुता और अतिशय क्षमाशीलता से देकर संघर्ष का निराकरण कर शान्ति की स्थापना की है। केवल लोकापवाद से बचने के लिए निष्कलंक गर्भवती सीता का राम के द्वारा परित्याग-निष्ठुरता का वह उदाहरण है जिसे क्षम्य नहीं कहा जा सकता लेकिन क्षमाशील, सहिष्णुता की प्रतिमूर्ति सीता राम के इस कृत्य पर न उन्हें बुरा-भला कहती है और न उस प्रजा को कोसती है, जिसके मिथ्या अपवाद के कारण उन्हें विषम स्थिति में वन-वन भटकना पड़ा । संकट की इस घड़ी में उनका हृदय प्रतिशोध की भयंकर ज्वाला से दग्ध नहीं होता, अपितु राजा राम और उनकी प्रजा दोनों का हित-चिन्तन करती हुई वे कहती हैं अवलम्ब्य परं धैर्य महापुरुष ! सर्वथा । सदा रक्ष प्रजां सम्यक् पितेव न्यायवत्सलः ।। अर्थात् --हे पुरुषोत्तम मेरे वियोगजन्य खेद का परित्याग कर धैर्य के साथ प्रजा का सम्यक् प्रकारेण पालन करना। सीता चाहतो तो अपने ऊपर किये गये अत्याचार की दुहाई देकर, राजा राम के प्रति विद्रोह भावना को भड़का कर संघर्ष का सूत्रपात कर सकती थी-पर नारी का हृदय “कोमलता का पालना है, दया का उद्गम है, शीतलता की छाया है, अनन्य भक्ति का आदर्श है' वे भला क्यों अशांति उत्पन्न करतीं ? __ बौद्ध धर्मावलम्बी मगधराज श्रेणिक का जैन साधुओं के प्रति अशोभनीय आचरण, उनकी जैन, धर्मावलम्बी रानी चेलना को उत्तेजित करने के लिए पर्याप्त था पर विवेकशील चेलना अपना धैर्य नहीं खोती । क्रोधान्ध होकर, प्रतिशोध लेकर वह राजा श्रेणिक के हृदय परिवर्तन में सफल नहीं हो सकती थी। हाँ, उसकी सहिष्णुता रंग लाई। राजा श्रेणिक ने जैन धर्म अङ्गीकार किया। चेलना का विवेकपूर्ण सहिष्णु आचरण धर्मान्ध कट्टरपंथी व्यक्तियों के लिए एक अनुकरणीय आदर्श है। धार्मिक सहिष्णुता के सन्दर्भ में कर्नाटक प्रान्त की जाकल देवी का उदाहरण भी उल्लेखनीय है। जैन धर्म के कट्टर विरोधी अपने पति चालुक्य राजा को जैनमतानुयायी बनाने का श्रेय जाकल देवी की विनम्रता और शालीनता को ही है। काश ! आज धर्म के नाम पर रक्त की होली खेलने वाले विवेकहीन, इन सहिष्णु नारियों से धार्मिक सद्भावना और सौहार्द का पाठ पढ़ सकते। राज-विद्रोह और धार्मिक वैमनस्य ही अशांति को जन्म नहीं देते, साहित्यिक प्रतिद्वन्द्विता भी शान्ति की जड़ें खोदती है। "वाद" के नाम पर तथाकथित बुद्धिजीवियों की गुटबन्दी, उखाड़-पछाड़, iiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiii . .. ......... २६६ | छठा खण्ड : नारी समाज के विकास में जैन साध्वियों का योगदान . . man. BEIN www.jainelibrapPage Navigation
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