Book Title: Nari ke Mukti Data Bhagawan Mahavir Author(s): Shanta Bhanavat Publisher: Z_Sadhviratna_Pushpvati_Abhinandan_Granth_012024.pdf View full book textPage 3
________________ साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ / प्रभु महावीर के उपदेश सुनकर जहाँ पुरुष आगे बढ़े हैं वहाँ नारियाँ भी पीछे नहीं रहीं / मगध के सम्राट श्रेणिक की महाकाली, सुकाली आदि दस महारानियाँ साधना-पथ स्वीकार कर लेती हैं / जो महारानियाँ महलों में रहकर आभूषणों से शरीर को विभूषित करतीं, वे जब साधना-पथ पर बढ़ीं तो कनकावली, रत्नावली आदि तप के हारों को धारणकर आत्म-ज्योति चमकाने लगीं। प्रभु महावीर के उपदेश सुन अनेक श्रावक अपने चारित्रधर्म में स्थिर हुए। अपने पति पर प्रभु महावीर की पड़ी आध्यात्मिक छाप से भला पत्नी कैसे वंचित रह सकती है ? शिवानन्दा जब आनन्द श्रावक से यह सुनती है-देवानप्रिये, मैंने श्रमण भगवान महावीर के पास से धर्म सुना है। वह धर्म मेरे लिये इष्ट, अत्यन्त रुचिकर व हितकर है / देवानुप्रिये, तुम भी भगवान महावीर के पास जाओ, उन्हें वन्दन करो, नमस्कार करो, उनका सत्कार करो, सम्मान करो, वे कल्याणमय हैं, मंगलमय हैं, ज्ञानस्वरूप हैं / उनकी पर्युपासना करो तथा 5 अणुव्रत, 3 गुणव्रत और 4 शिक्षाव्रत 12 प्रकार का गृहस्थधर्म स्वीकार करो। शिवानन्दा यह सुनकर बड़ी प्रसन्न हुई। भगवान के पास जाकर उसने श्राविकाधर्म अंगीकार किया। प्रभु महावीर की प्रेरणा से गृहस्थाश्रम में नारी का सम्मान बढ़ा, शीलवती पत्नी के हित का ध्यान रखकर कार्य करने वाले पुरुष को महावीर ने सत्पुरुष कहा / विधवाओं की स्थिति में सुधार हुआ। महावीर के समय सती प्रथा की छुट-पुट घटनाएँ भी मिलती हैं। जीव-हिंसा के विरोधी महावीर की प्रेरणा से इस कुप्रथा का भी अन्त हुआ। महावीर की दृष्टि में मातृत्व शक्ति का बड़ा सम्मान था। जब वे गर्भ में थे, तब यह सोचकर कि मेरे हलन-चलन से माँ को अपार कष्ट की अनुभूति होती होगी, उन्होंने कुछ समय के लिए अपनी हलन-चलन की क्रिया बन्द कर दी। इससे माता त्रिशला को अपने गर्भस्थ शिशु के बारे में शंका हो उठी और वह अत्यधिक दुःखी होने लगी। माँ की इस मनोदशा को जान महावीर ने फिर हलन-चलन क्रिया, प्रारम्भ कर दी। बच्चे की कुशल कामना से माँ का मन प्रसन्नता से भर गया। इस घटना से मां के प्रति महावीर की भक्ति अत्यधिक बढ़ गई और उन्होंने गर्भावस्था में ही यह संकल्प किया कि मैं माता-पिता के जीवित रहते वैराग्य धारण नहीं करूंगा। इस प्रतिज्ञा का पालन उन्होंने अपने जीवन में किया। जब तक माता-पिता जीवित रहे, उन्होंने दीक्षा नहीं ली। इस प्रकार स्पष्ट है कि महावीर की दृष्टि में नारी के प्रति आदर और श्रद्धा का भाव था। वे उसे साधना में बाधक न मानकर प्रेरणा-शक्ति और सहनशीलता की प्रतिमूर्ति मानते थे। यह उन्हीं का साहस था कि उन्होंने नारी को आज से अढाई हजार वर्ष पूर्व सामाजिक और आर्थिक अधिकारों से वढ़कर, वे समस्त आध्यात्मिक अधिकार प्रदान किये जिनके कारण वह आत्म-शक्ति का पूर्ण विकास कर स्वयं परमात्मा बन सके। नारी के मुक्तिदाता भगवान महावीर : डॉ० शान्ता भानावत | 236Page Navigation
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