Book Title: Nari Prerna aur Shakti
Author(s): Madhubala Sadhviji
Publisher: Z_Sadhviratna_Pushpvati_Abhinandan_Granth_012024.pdf

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Page 2
________________ HHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHH साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ IRHAHAHAHIARH . व्यवस्था की गई। जैनागम पढ़ने का अधिकार दिया। नारी को सामाजिक, धार्मिक, राष्ट्र के हितों को ऊपर उठाने की शिक्षा-दीक्षा दी । जैनागमों में जितनी दृढ़ता से संयम पुरुष वर्ग ने पाला, उतनी दृढ़ता से नारी ने भी पाला। चौबीस तीर्थकरों के समय की नारी- सबसे पहले अवसर्पिणी काल में मरुदेवी माता का नाम आता है जिसने सभी जीवों को मुक्ति जाने का संदेश दिया। उनके बाद ब्राह्मी, सुन्दरी का नाम आता है। उन महासतियों ने गृहस्थ अवस्था के अन्दर भी ब्राह्मी लिपि सीखकर, नारी जाति के लिए मार्ग प्रशस्त किया। उस लिपि का प्रचलन अबाध गति से चला आ रहा है। धार्मिक क्षेत्र में सबसे पहले जैन साध्वी होने का मौका मिला । अपने भाई श्री बाहुबली को अभिमान हाथी से नीचे उतारकर, उन्हें सद्मार्ग बताया। महासती सीता, कुन्ती, द्रौपदी, दमयन्ती, राजमती आदि सभी महासतियों ने जैनधर्म को गौरवान्वित किया । उत्तराध्ययन के २२ वें अध्ययन में राजमती ने रहनेमि को संयम में स्थिर किया। गाथा-गोवालो भण्डवालो वा, जहा तद्दव्वऽणिस्सरो। एवं अणिस्सरोतपि, सामण्णस्स भविस्ससि ।। ४६ ॥ अर्थात्-जैसे गोपाल और भाण्डपाल उस दव्य के- गायों और किराने आदि के स्वामी नहीं होते हैं, उसी प्रकार तु भी श्रामण्य का स्वामी नहीं होगा। ऐसे अनेकों प्रकार से उपदेश देकर संयम में बनाये, और मोक्ष प्राप्त किया। १४ वें अध्ययन में महारानी कमलावती ने महाराजा इक्षकार को धर्मोपदेश देकर भोगों से हटाकर संयम अंगीकार करवाया और मोक्ष प्राप्त किया। गाथा-नागोव्व बंधणं छित्ता, अप्पणो वसहि वए। एयं पत्थं महाराय ! उसुयारि त्ति मे सुयं ।। ४८ ।। अर्थात्-बंधन को तोड़कर जैसे हाथी अपने निवास स्थान (वन) में चला जाता है वैसे ही हमें भी अपने वास्तविक स्थान (मोक्ष) में चलना चाहिए । हे महाराज इषुकार ! यही एक मात्र श्रेयस्कर है, ऐसा मैंने ज्ञानियों से सुना है। ये उद्गार महारानी कमलावती के हैं। श्रीमदन्तकृद्दशांग सूत्र के पाँचवें वर्ग में दस अध्ययन फरमाये हैं-(१) पद्मावती (२) गौरी (३) गांधारी (४) लक्ष्मणा (५) सुसीमा (६) जाम्बवती (७) सत्यभामा (८) रुविमणी (6) मूलश्री और (१०) मूलदत्ता और आठवें वर्ग में १० अध्ययन हैं-(१) काली (२) सुकाली (३) महाकाली (४) कृष्णा (५) सुकृष्णा (६) महाकृष्णा (७) वीरकृष्णा (८) रामकृष्णा (8) पितृसेनकृष्णा और (१०) महासेनकृष्णा । इन २० महासतियों ने संसार अवस्था में भी जैनधर्म को दृढ़ता से पाला और दीक्षित होने पर भी अजर अमर पर प्राप्त किया। सुलसा नामक श्राविका ने समकित में दृढ़ रहने का परिचय दिया। सुभद्रा, अंजना, मंजुला, सुरसुन्दरी, कनक सुन्दरी, लीलावती, झणकारा, देवानन्दा, त्रिशला, मृगावती, शिवा, चेलणा, प्रभावती, पद्मावती, सुज्येष्ठा इत्यादि महसतियों (नारी) ने जैनागम में चार चाँद लगा दिये। कलावती ने पुरुष द्वारा दिये दुःखों को हँसते-हँसते पार किया। महासती रत्नवती शादी होने के बाद भी अखण्ड ब्रह्मचारिणी रही। महासती मदनरेखा ने असह्य कष्ट उठाते हुए भी पति को नवकार मन्त्र का शरणा देकर सद्गति प्राप्त करवाई। प्रभु महावीर के गृहस्थावस्था की पुत्री प्रियदर्शना ने भी जैन शासन की प्रभावना की। अरणक मुनि ममतामयी माता का उपदेश सुनकर पुनः मंयममार्ग में प्रवृत्त हुए । अंग्रेजी लेखक विक्टर हयुगो ने लिखा है २६८ | छठा खण्ड : नारी समाज के विकास में जैन साध्वियों का योगदान

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