Book Title: Nari Prerna aur Shakti
Author(s): Madhubala Sadhviji
Publisher: Z_Sadhviratna_Pushpvati_Abhinandan_Granth_012024.pdf
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ जैनागम और नारी - जैन साध्वी मधुबाला 'सुमन' (शास्त्री, साहित्यरत्न ) प्राचीन भरतक्षेत्र से अभी वर्तमान भरतक्षेत्र तक आर्य नारी ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है । जितना योगदान जैनागमों में पुरुष वर्ग ने दिया, उतना ही योगदान नारियों ने दिया । महापुरुषों को जन्म देने वाली, रत्न कुक्षि को धारण करने वाली, नारीरत्न का जैनागमों में काफी ऊँचा स्थान भविष्य में भी रहेगा । नारी वह कलाकार है, जो पत्थर तक को पूजित बना दे । हर प्राणी सबसे पहले नारी की गोद में खेलता है, बालक्रीड़ाएँ करता है । उसको हरदम माँ का वात्सल्य चाहिए, और नह वात्सल्य उसे हरदम मिलता रहता है । उस अबोध अवस्था में नारी (माँ) उसको हर प्रकार से भौतिक, व्यावहारिक और धार्मिक शिक्षा-दीक्षा देती रहती है । बचपन में प्यार-वात्सल्य के साथ दी गई सशिक्षा पूरी जिंदगी में महत्त्वपूर्ण साबित होती है। इसके लिए वीर अभिमन्यु, मदालसा आदि का उदाहरण काफी है । जब महान् पुरुष गर्भ में आते हैं, तब उनकी माताएँ गर्भ का पालन समुचित रूप से करती हैं । माताएँ सदैव इस बात का ध्यान रखती हैं कि मेरे मन में बुरे विचार नहीं आयें। अगर बुरे विचार आ भी गये तो तत्काल झटक कर सावधान बन जाती है । वैष्णव परम्परा और जैनधर्म में नारी - जहाँ वैष्णव परम्परा में नारी को वेद मंत्र सुनने का अधिकार नहीं था । नारी को धार्मिक क्षेत्र में भी बंदिश थी । नारी नरक की खान कहकर ऋषि-मुनियों ने पुकारा। हर तरह से नारी को घृणा की दृष्टि से देखते थे । वहाँ प्रभु महावीर ने नारी को बराबर का स्थान दिया । नारी को नर की खान साबित कर दिया । अन्य मतों में नारी के लिए किसी प्रकार का सिद्धान्त नहीं था, वहाँ प्रभु महावीर ने नारी के लिए सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। जैनागमों में चाहे शूद्र हो, वैश्य हो सबको बराबर धर्मं सुनने का अधिकार दिया । नारी को गृहस्थधर्म एवं अनगारधर्म में प्रविष्ट होने का मौका दिया । नारी को प्रवत्तनी बनने का अधिकार दिया । ज्ञान, ध्यान, तपस्या और कर्म तोड़ने का बराबर उपक्रम बताया । नारी भी केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष प्राप्त कर सकती है । नारी को पांच महाव्रत, पाँच समिति, तीन गुप्ति, ब्रह्मचर्य, बन्ध, यतिधर्म, तैतीस असातना, प्रायश्चित्त, आलोचना, बारह व्रत, संथारा, संलेखना, श्रावक के २१ गुण, व्रत, प्रत्याख्यान, विहार चर्या, सभी समान रूप से जैनागम और नारी: जैन साध्वी मधुबाला 'सुमन' | २०७ www.] Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ HHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHH साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ IRHAHAHAHIARH . व्यवस्था की गई। जैनागम पढ़ने का अधिकार दिया। नारी को सामाजिक, धार्मिक, राष्ट्र के हितों को ऊपर उठाने की शिक्षा-दीक्षा दी । जैनागमों में जितनी दृढ़ता से संयम पुरुष वर्ग ने पाला, उतनी दृढ़ता से नारी ने भी पाला। चौबीस तीर्थकरों के समय की नारी- सबसे पहले अवसर्पिणी काल में मरुदेवी माता का नाम आता है जिसने सभी जीवों को मुक्ति जाने का संदेश दिया। उनके बाद ब्राह्मी, सुन्दरी का नाम आता है। उन महासतियों ने गृहस्थ अवस्था के अन्दर भी ब्राह्मी लिपि सीखकर, नारी जाति के लिए मार्ग प्रशस्त किया। उस लिपि का प्रचलन अबाध गति से चला आ रहा है। धार्मिक क्षेत्र में सबसे पहले जैन साध्वी होने का मौका मिला । अपने भाई श्री बाहुबली को अभिमान हाथी से नीचे उतारकर, उन्हें सद्मार्ग बताया। महासती सीता, कुन्ती, द्रौपदी, दमयन्ती, राजमती आदि सभी महासतियों ने जैनधर्म को गौरवान्वित किया । उत्तराध्ययन के २२ वें अध्ययन में राजमती ने रहनेमि को संयम में स्थिर किया। गाथा-गोवालो भण्डवालो वा, जहा तद्दव्वऽणिस्सरो। एवं अणिस्सरोतपि, सामण्णस्स भविस्ससि ।। ४६ ॥ अर्थात्-जैसे गोपाल और भाण्डपाल उस दव्य के- गायों और किराने आदि के स्वामी नहीं होते हैं, उसी प्रकार तु भी श्रामण्य का स्वामी नहीं होगा। ऐसे अनेकों प्रकार से उपदेश देकर संयम में बनाये, और मोक्ष प्राप्त किया। १४ वें अध्ययन में महारानी कमलावती ने महाराजा इक्षकार को धर्मोपदेश देकर भोगों से हटाकर संयम अंगीकार करवाया और मोक्ष प्राप्त किया। गाथा-नागोव्व बंधणं छित्ता, अप्पणो वसहि वए। एयं पत्थं महाराय ! उसुयारि त्ति मे सुयं ।। ४८ ।। अर्थात्-बंधन को तोड़कर जैसे हाथी अपने निवास स्थान (वन) में चला जाता है वैसे ही हमें भी अपने वास्तविक स्थान (मोक्ष) में चलना चाहिए । हे महाराज इषुकार ! यही एक मात्र श्रेयस्कर है, ऐसा मैंने ज्ञानियों से सुना है। ये उद्गार महारानी कमलावती के हैं। श्रीमदन्तकृद्दशांग सूत्र के पाँचवें वर्ग में दस अध्ययन फरमाये हैं-(१) पद्मावती (२) गौरी (३) गांधारी (४) लक्ष्मणा (५) सुसीमा (६) जाम्बवती (७) सत्यभामा (८) रुविमणी (6) मूलश्री और (१०) मूलदत्ता और आठवें वर्ग में १० अध्ययन हैं-(१) काली (२) सुकाली (३) महाकाली (४) कृष्णा (५) सुकृष्णा (६) महाकृष्णा (७) वीरकृष्णा (८) रामकृष्णा (8) पितृसेनकृष्णा और (१०) महासेनकृष्णा । इन २० महासतियों ने संसार अवस्था में भी जैनधर्म को दृढ़ता से पाला और दीक्षित होने पर भी अजर अमर पर प्राप्त किया। सुलसा नामक श्राविका ने समकित में दृढ़ रहने का परिचय दिया। सुभद्रा, अंजना, मंजुला, सुरसुन्दरी, कनक सुन्दरी, लीलावती, झणकारा, देवानन्दा, त्रिशला, मृगावती, शिवा, चेलणा, प्रभावती, पद्मावती, सुज्येष्ठा इत्यादि महसतियों (नारी) ने जैनागम में चार चाँद लगा दिये। कलावती ने पुरुष द्वारा दिये दुःखों को हँसते-हँसते पार किया। महासती रत्नवती शादी होने के बाद भी अखण्ड ब्रह्मचारिणी रही। महासती मदनरेखा ने असह्य कष्ट उठाते हुए भी पति को नवकार मन्त्र का शरणा देकर सद्गति प्राप्त करवाई। प्रभु महावीर के गृहस्थावस्था की पुत्री प्रियदर्शना ने भी जैन शासन की प्रभावना की। अरणक मुनि ममतामयी माता का उपदेश सुनकर पुनः मंयममार्ग में प्रवृत्त हुए । अंग्रेजी लेखक विक्टर हयुगो ने लिखा है २६८ | छठा खण्ड : नारी समाज के विकास में जैन साध्वियों का योगदान Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ HHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHम्म्म्म्म्म्म्म्म्मामा साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ LIHEHERE iiiHHHHHHHiमम्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म Man have sight, woman have insight. अर्थात्- मनुष्य को दृष्टि प्राप्त होती है पर नारी को दिव्य दृष्टि । जितनी धार्मिक भावना नारी में होती है, उतनी पुरुषों में नहीं। मध्य काल की आर्य नारी-भगवान महावीर स्वामी के निर्वाण के बाद भी, मध्य काल की नारियों का नाम श्रद्धा से लिया जाता है। चांपराज हाड़ा की पत्नी रानी सोन ने दिल्ली के दरबार में भारतीय नारी की गौरव परम्परा के लिए, एक नाटकीय ढंग से नृत्य करके झूठ का पर्दा फाश किया। आखिर मुगल बादशाह को मानना पड़ा कि वास्तव में भारतीय नारी चारित्र दृढ़ता में प्रख्यात है। जैसलमेर की राजकुमारी रत्नवती ने बादशाह औरंगजेब को करारी चोट पहुँचा कर विजय प्राप्त की, आखिर हार मानकर सन्धि करके दुगुना राज्य प्रदान किया। पन्नाधाय ने अपने लडके का बलिदान कर उदयसिंह को बचाया । कुंभलमेर दुर्ग के किलेदार आशाशाह देपुरा ने माता की फटकार सुनकर पूरे आत्म विश्वास के साथ बालक उदयसिंह की रक्षा की। All the seasonings of man are not worth one sentiment of woman. (वालटेयर) अर्थात्-पुरुष के सारे तर्क स्त्री के एक भाव के समक्ष अयोग्य साबित होते हैं । धर्ममय स्त्री की भावना इतनी तीव्र होती है कि सारे घर को धर्ममय वातावरण में ढाल देती है। जोधपुरनरेश महाराज भीमसिंह जी को बादशाह ने दिल्ली के दरबार में बुलाया और पूछा-महाराज भीमसिंह जी! आपको यह कमधज की पदवी किसने दी ? भीमसिंह बोले- इसे तो हमारे पूर्वजों ने, हमारी हिम्मत ने-हमारी शूरवीरता ने दी है। जिसका सिर शत्रु के प्रहार से कट जाय और धड़ लड़ता रहे उसे कमधज कहते हैं। बादशाह-कोई वीर हो तो हाजिर करो अन्यथा पदवी का त्याग करो। एक महीने की मौहलत लेकर जोधपुर पधारे। सभी से इस बात की चर्चा की, परन्तु कोई भी तैयार नहीं हुआ। इधर जाति का मेड़तियाँ चाँदावत कुड़की सरदार का लड़का सुमेरसिंह बूंदी के सरदार की लड़की के साथ शादी करके पुर आये। महाराज को मुजरा किया। महाराज ने इस बात के लिए कहा। वह तैयार हो गया। घर जाकर माता-पिता की आज्ञा से पत्नी को लेकर दिल्ली आये। सभी को कहा मेरा सिर उडा दो मगर किसी की हिम्मत नहीं हुई । कुँवराणी ने पति का सिर उड़ा दिया और बोली-वाह राजपूती ! तीन बार कहा और धड़ दौड़ने लगा । जिधर पहुँच जाय उधर सफाया होने लगा। भगदड़ मच गई । आखिर गुली का छींटा देकर धड़ को ठन्डा किया। पति के साथ कंवराणी भी सती हो गई। अगर नारी समेर सिंह को हिम्मत नहीं बँधाती तो यह वीरतापूर्ण कार्य असंभव था। सती जसमा ने अपने प्राण दे दिये मगर शील पर आँच नहीं आने दी। मध्यकाल की नारियों में वीरता, चरित्रनिष्ठा कूट-कूट कर भरी हुई होती थी। वे अपनी सन्तानों को भी चरित्रनिष्ठ, ईमानदार, सत्य आदि बातें सिखाती थीं। मौका मिलने पर आन-बान पर न्योछावर हो जाती थी। विद्वानों की दृष्टि में नारी-महात्मा गाँधी की माता ने हर तरह से बचपन में शिक्षा दी थी तभी आगे जाकर वे राष्ट्रपिता कहलाये एवं देश को आजाद कराने में अग्रणी रहे । वीर माता ने भगतसिंह को वीर बनाया एवं हँसते-हँसते फाँसी पर लटक गये, अपनी वेदना को भूलकर भारत माता को आजाद कराने में अन्त समय तक जुड़े रहे । नारी एक वह अलौकिक शक्ति है जो अपने गुणों से सभी को आनन्द एवं प्रकाश से आलोकित करती है। वर्तमान में भी नारी ने राष्ट्रीय अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में जैनागम और नारी : जैन साध्वी मधुबाला 'सुमन' | २९६ WIJ Neratona. www.PIOS Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साध्वीरत्नपुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ) महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। ऊँचे-ऊँचे पदों पर नारी आसीन है। डाक्टर, सर्जन, वकील, पुलिस, न्यायाधीश आदि अनेकों पदों पर आसीन है। अनेकों विद्वानों ने नारी को गरिमामय माना है। स्वामी विवेकानन्द जी ने कहा है, "नारियों की अव्यवस्था में सुधार न होने तक विश्व के कल्याण का कोई मार्ग नहीं है / किसी एक पक्षी का एक पंख के सहारे उड़ना नितांत असम्भव है।" आगे और लिखते हैं "नारी उत्थान के लिए सचमुच ही कुछ करना चाहते हो तो केवल इतना करो कि उसे हर क्षेत्र में विकसित होने का अवसर दो, उसके लिए उसे उत्साहित करो और पूरी तत्परता से उसका सहयोग करो / अपनी भूलों का सुधार भर कर लो। नारी अपना पक्ष सम्भालने में सक्षम है।" मध्यकाल से थोड़े वर्षों पहले तक नारी की बड़ी उपेक्षा थी। उसे विदुषी नहीं बनने देते थे। सिर्फ घर का काम करवाने में ही इतिश्री समझ लेते थे। इसके लिए विद्याभूषण ने लिखा है कि, "लोग यह सिद्धान्त पुरुषों में तो लागू करना चाहते हैं किन्तु स्त्रियों के प्रति एक दो व्यक्ति नहीं सारा का सारा समाज इस सिद्धान्त का उल्लंघन कर रहा है। यह एकांगी चिंतन कब तक चलेगा? मानवी चेतना, उसका विवेक इसे कब तक सहन कर सकेगा" ? मध्य काल में पर्दा-प्रथा बहुत थी, स्त्री के नख तक नहीं दिख सकते थे। उस समय स्त्रियों पर बहुत अत्याचार हो रहे थे / समय देखकर पर्दा-प्रथा लागू की थी। लेकिन बाद में भी वह ज्यों की त्यों बनी रही। इसके लिए स्वामी राम ने अन्तर् वेदना के साथ लिखा, "पर्दे से यदि शील का रक्षण होता है तो फिर उसे पुरुष के लिए भी प्रयुक्त क्यों नहीं करते' ? नारी में बुद्धि पुरुष से भी ज्यादा होती है, मगर पुरुषों ने उसे बुद्ध समझ लिया / उसे कहीं आने-जाने की इजाजत नहीं थी। हर वक्त उसे चारदीवारी में बन्द रहना पड़ता था। इसी से दुःखी होकर कार्लाइल ने लिखा है कि "जिन देवियों के थोड़े से अंश का अनुदान पाकर पुरुष सबल बना है उन्हें दुर्बल कहना, जो अपनी अजस्र अनुदान परम्परा के कारण देवी कहलाती हैं, उन्हें स्वावलम्बन के अयोग्य ठहराना बुद्धि का दिवालियापन नहीं तो और क्या है" ? पहले जमाने में पुत्रियों का जन्म होते ही मार डालते थे / ज्यादा पुत्रियों का होना अभिशाप समझा जाता था, लेकिन जो काम पुत्रियाँ करके दिखातीं वह काम पुत्र को करने में मुश्किल थी। नारी रत्न-कुक्षि है, यह बात कोईकोई ही समझ पाता था। सबको समझना नामुमकिन था / अतः पुत्र से भी पुत्री को ज्यादा महत्त्व देते हुए महर्षि दयानन्द ने कहा, "भारतवर्ष का धर्म उसके पुत्रों से नहीं, सुपुत्रियों के प्रताप से हो स्थिर है / भारतीय देवियों ने यदि अपना धर्म छोड़ दिया होता तो देश कब का नष्ट हो चुका होता"। ___ अतः हम कुल मिलाकर कह सकते हैं कि जैनागमों और अन्य साहित्य में नारी का उच्च स्थान है। दान, शील, तप, भाव, ब्रह्मचर्य, अहिंसा, अस्तेय, तप वगैरह में, देश, राष्ट्र, और धार्मिक क्षेत्र में गौरवमय है। 300 | छठा खण्ड : नारी समाज के विकास में जैन साध्वियों का योगदान www.jainelioraces