Book Title: Nari Jivan Jagaran
Author(s): Saubhagyamal Jain
Publisher: Z_Sadhviratna_Pushpvati_Abhinandan_Granth_012024.pdf

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Page 5
________________ - इन्हीं महासती सोहनकुँवरजी के पास उदयपुर निवासी श्री जीवनसिंहजी बरडिया की सुपुत्री श्री सुन्दरकुमारी ने अपनी लघु वय (केवल 14 वर्ष) में ही दीक्षा ग्रहण की और उनका दीक्षा नाम महासती पुष्पवती जी रखा गया। विदुषी साध्वी पुष्पवती जी ने दीक्षा के पश्चात् से साहित्य, धर्म, दर्शन सम्बन्धी ग्रन्थों, जैन आगमों का अध्ययन प्रारम्भ कर दिया। परिणामस्वरूप वह साधना के क्षेत्र के साथ विद्या के त्रि में भी सतत प्रगति करती रहीं। उन्होंने अपने साधनाकाल में ही कई ग्रंथों का प्रणयन तथा संपादन किया है / यह एक मणिकांचन योग है कि महासती पुष्पवती के संसार पक्ष के सहोदर साहित्य वाचस्पति श्री देवेन्द्र मुनिजी हैं जो उपाध्याय श्री पुष्कर मुनिजी के विद्वान शिष्य हैं / मुझे महासती जी के दर्शन श्रद्धेय देवेन्द्र मुनिजी की कृपा से ही हुए थे। महासती जी के सौम्य मुख मण्डल पर अपूर्व शान्ति तथा साधना की झलक स्पष्ट दृष्टिगोचर होती है। महासती जी के साधनाकाल को आगामी 12-2-1988 को अर्धशताब्दी जितना लम्बा काल हो जावेगा। मेरी हार्दिक कामना है कि महासती जी चिरायु होकर अपनी आत्म-साधना में सलग्न रहें तथा जिनशासन की प्रभावना करती रहें। - - ---- पुष्प-सूक्ति-सौरभ सत्य संसार की सबसे बड़ी शक्ति है। संसार के समस्त बलों का समावेश सत्य में हो जाता है। / सत्य का सर्वांगीण स्वरूप समझने के लिए दृष्टि का शुद्ध, स्पष्ट और सर्वांगीण होना बहुत आवश्यक है। - सत्य को भली-भाँति समझने के लिए मनुष्य को सम्यग्दर्शन एवं सम्यग्ज्ञान की अग्नि में अविद्या को भस्म करना पड़ता है, तभी हृदय में सत्य का सूर्य उदित होता है। / जैसे नमक की डली और नमक दोनों अलग-अलग नहीं हैं, एक ही हैं, वैसे ही सत् और सत्य दोनों एक ही हैं। / सत् वस्तु सत्य से व्याप्त है, सत् में सत्य ओतप्रोत है / सत् और सत्य दोनों में भेद नहीं है, दोनों एक ही हैं। 0 जो स्वयं तीनों काल में रहे, जिसके अस्तित्व के लिए दूसरे की अपेक्षा न . रहे, उसका नाम सत्य है। 0 सत्य स्वयं विद्यमान रहता है, उसके ही आधार पर अन्य सारी चीजों का अस्तित्व निर्भर है। -पुष्प-सूक्ति-सौरभ नारी जीवन जागरण : सौभाग्यमल जैन | 256.

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