Book Title: Nari Jivan Jagaran
Author(s): Saubhagyamal Jain
Publisher: Z_Sadhviratna_Pushpvati_Abhinandan_Granth_012024.pdf

View full book text
Previous | Next

Page 1
________________ साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ ना री जी व न जा ग र ण -सौभाग्यमल जैन नृवंशवेत्ताओं ने मानव वंश को कुछ युगों में विभाजित करके उन युगों का नामसंस्करण आदि मानव, पाषाणयुग, नव पाषाणयुग, ताम्र युग किया है। इन युगों की पुरातत्वीय सामग्री में पाषाण के अस्त्र, प्रागैतिहासिक शैलचित्र आदि से पाषाण आदि युगों के मानव-जीवन का अनुमान किया जा सकता है किन्तु आदिमानव कैसा था? इसकी कल्पना नहीं की जा सकती। कहा जाता है कि आदिमानव पशु जैसा था। उसके पास भाषा नहीं थी। उसके पश्चात वह जंघाओं के बल पर चलने लगा। वह एक प्रकार से भोजन एकत्र करने वाला (Food gatherer) था। उसने पाषाण युग में प्रवेश किया, पाषाण के अस्त्र-शस्त्र बनाये, फिर नव-पाषाण युग में प्रवेश करके उन पाषाण के अस्त्र-शस्त्रों को सुधारा, अधिक तीक्ष्ण किया और तत्पश्चात् लौह (ताम्र) युग में प्रवेश करके लोहे के अस्त्र-शस्त्रादि का निर्माण किया अपनी रक्षा के लिये तब उसने कबीलों के साथ रहना शुरू कि नत्र उसने कबीलों के साथ रहता शरू किया.खेती प्रारंभ की ग्राम भी बसाये । उस युग में उसकी सहचरी नारी का जीवन क्या था? यह कहना मुश्किल है। कुछ शैलचित्रों से यह अनुमानित किया जा सकता है कि उस समय उन्मुक्त जीवन था, पारिवारिक रिश्ते नहीं थे। जैन विचारकों ने कालप्रवाह को अनादि माना तथा यह मत व्यक्त किया है कि उत्सर्पिणी तथा अवसर्पिणी के ६-६ आरे में क्रमशः सृष्टि के जीवन में उत्थान-पतन हुआ करता है । अवसर्पिणी काल के प्रथम दो आरे तथा तीसरे आरे के अधिकांश काल में भोग युग रहता है। कर्म की आवश्यकता नहीं होती थी। मानव की आवश्यकता “कल्पवृक्षों' से पूर्ण हो जाती थी। यदि इसे अलंकारिक भाषा मानें तो सारांश यह निकलता है कि उस युग के मानव की आवश्यकता अत्यन्त अल्प होती थी, प्रकृति माता (उसे कल्पवृक्ष ही कहा जा सकता है) पूरी कर देती थी। उस युग में पुरुष और नारी में वैवाहिक संस्था का अविर्भाव नहीं हुआ था, अपितु पिता-माता की संतान बालक-बालिका यौन सम्बन्ध स्थापित कर लेती थी। यदि हम पैदिक साहित्य में प्राप्त संवाद (यम-यमी संवाद) की ओर विचार करें तो उस युग के जीवन का चित्र मालूम पड़ सकता है । चौदहवें कुलकर नाभिराय के सुपुत्र ऋषभदेव ने मानव सभ्यता की नींव डाली, विवाह संस्था की स्थापना की, मानव जाति को कर्म का उपदेश दिया। मानव ने संस्कृति के क्षेत्र में प्रवेश किया तथा परिवार का विचार साकार हआ। नारी जीवन जागरण : सौभाग्यमल जैन | २५५

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5