Book Title: Nari Dharm Evam Sanskruti Ki Sajag Prahari Author(s): Amarmuni Publisher: Z_Panna_Sammikkhaye_Dhammam_Part_01_003408_HR.pdf View full book textPage 8
________________ उदारमना है, वही लक्ष्मी की सच्ची मालकिन कही जा सकती हैं। जैन-साहित्य के महान् मनीषी ने कहा है-- "न गृहं गृहमित्याहुऍहिणी गृहमुच्यते।" --ईंटों और पत्थरों का बना हुआ घर, घर नहीं कहलाता, सद्-गृहिणी के होने पर ही, घर वस्तुतः घर कहलाता है। खेद है कि आजकल ऐसी आदर्श गृहिणियों के बहुत कम दर्शन होते हैं। धनाढ्य लोगों के घरों में भी प्रायः ऐसी गृहणियाँ होती है, जो घर आए किसी गरीब-दुःखी को सान्त्वना देने के बदले गालियाँ देकर, धक्का दिलवाकर निकाल देती हैं। किन्तु जो सद्गृहिणियों होती है, वे बड़ी संजीदगी से पेश आती हैं। वे कभी किसी के प्रति न तो कट व्यवहार करती हैं और न कभी अपने चेहरे पर क्रोध की कोई एक रेखा ही आने देती हैं। पन्ना समिक्खए धम्म Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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