Book Title: Naksho me Dashkaran
Author(s): Yashpal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 4
________________ नक्शों में दशकरण (जीव जीता-कर्म हारा) एक दृष्टि से धर्मज्ञान के क्षेत्र में जो मैं समझ पाया, उसी का ही चित्रण इस कृति में है, कपोल-कल्पित कुछ नहीं है। मैं धर्मक्षेत्र में कपोलकल्पित विषय को स्वीकार करना भी नहीं चाहता; क्योंकि वह उचित भी नहीं है। सर्वज्ञ भगवान के उपदेशानुसार जो है, वही मान्य है। मैं अपना भाव स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि मेरा अध्ययन तो विशेष नहीं है तो भी मैंने मात्र अपने उपयोग को निर्मल रखने के लिए तथा तत्त्वनिर्णय में अनुकूलता बनी रहे, इस धर्मभावना से दशकरणों के संबंध में कुछ लिखने का प्रयास किया है। विज्ञ पाठक गलतियों की क्षमा करेंगे और मुझे मार्गदर्शन करेंगे। ऐसी अपेक्षा करता हूँ। इस कृति को यथार्थ बनाने की भावना से मैंने अनेक लोगों को इसे दिखाया है और उनके सुझावों का लाभ भी उठाया है। उनमें पं. राजमलजी भोपाल, पं. प्रकाशजी छाबड़ा इन्दौर, विदुषी विजया भिसीकर कारंजा, पं. जीवेन्द्रजी जड़े, बाहुबली (कुंभोज), ब्र. विमलाबेन जबलपुर, ब्र. कल्पनाबेन सागर एवं अरुणकुमार जैन अलवर हैं। मैं इन सबका हृदय से आभार मानता हूँ। इनके सहयोग के बिना इस कृति का प्रकाशन संभव नहीं था। साधर्मी इस कृति से लाभ उठा लेंगे, ऐसी अपेक्षा है। जिनागम के अभ्यासु पाठकगण इस कृति का अवलोकन करके मुझे आगम के आधार से मार्गदर्शन करेंगे ही यह भावना है। दशकरण विषय को विशेष विस्तार के साथ जानने की जिनकी भावना हो, वे जीव जीता-कर्म हारा (अर्थात् दशकरण चर्चा) पुस्तक का जरूर अध्ययन करे। यह कृति मेरी ही है और श्री टोडरमल स्मारक ट्रस्ट ने ही इसे प्रकाशित किया है। -ब्र. यशपाल जैन - नक्शों में दशकरण दशकरण चर्चा पुस्तक लिखने के समय से लेकर एक विषय मुझे बारंबार सताता रहा कि दशकरणों को कक्षा में बोर्ड के माध्यम से नक्शे के द्वारा समझाना कैसे बनेगा? अनेकों से पूछा भी; तथापि कुछ समाधानकारक उत्तर नहीं मिला। मैंने स्वयं ही अनेक प्रकार के नक्शे बनाने का प्रयास किया। अनेक लोगों को बताया/दिखाया। ___ मुझे नक्शे के द्वारा समझाने का परिणाम तीव्र होता रहा। एक बार दसों करणों का सामान्य नक्शा बनाया भी; तथापि वे सब नक्शे खो गये। एक बार मन में ऐसा भी विचार आया कि छोड दो डसनक्शे के विषय को। __ क्या बताऊँ मैं अपने परिणामों को? जैसे-जैसे नक्शे को बनाने के विषय को छोड़ने का निर्णय करता गया वैसे-वैसे वह विषय मेरे मन में और गहराई में बैठ गया। रात्रि में नींद टूटने के बाद भी नक्शा तो बनाना ही चाहिए - यही विषय ऊर्ध्व होता रहा। फिर नक्शा बनाने का मानस बनाया। इसी क्रम में मुझे कारंजा (जि. अकोला, महाराष्ट्र) से मराठी में प्रकाशित जैन सिद्धान्त प्रवेशिका मिली; जिसका संपादन विदुषी श्रीमती विजया अजितकुमारजी भिसीकर ने किया है। उसमें उदय-उदीरणा, उत्कर्षण के कुछ नक्शे मिले। इनसे मुझे मार्गदर्शन मिला। उनका आधार लेकर मैंने दसों करणों का नक्शा बना तो दिया है; तथापि कोई साधर्मी इन नक्शों को इससे भी बढ़िया या सर्वोत्तम बनाने में मार्गदर्शन करेंगे तो मैं उनका स्वागत ही करूँगा। बंध और सत्त्व के चित्र श्री गणेशवायकोस, औरंगाबाद ने बनाया है। दशकरण का विषय पाठकों को कितना समझ में आयेगा अथवा नहीं आयेगा, इसे गौण करते हुए मैं सोचता हूँ तो मुझे हार्दिक समाधान है कि मुझे व्यक्तिगत बहुत-बहुत लाभ हुआ है। भविष्य में भी मैं यह आशा रखता हूँ कि यह विषय मुझे और अधिक स्पष्ट हो जावें। - ब्र. यशपाल जैन - -

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