Book Title: Nagaur ke Jain Mandir aur Dadavadi
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Z_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf

View full book text
Previous | Next

Page 7
________________ नागौर के जन मन्दिर और दादावाड़ी खरतरगच्छभट्टारक गच्छे श्री जिनसुबसूरि शिष्यांग प्रा श्री श्री कीर्तिवर्द्धनजी गणि पं० प्र० श्री इलाधनजी गणि पं० प्र० श्री विनीतसुन्दरजी गणि तच्छिष्य पं० गजानन्द मुनि उपदेशात् श्री खरतरगच्छधेन दादा श्री जिनकुशलसूरिणा का जीर्णोद्धार करवाया।" इसके बाद संवत् १८८२ में भी जीर्णोद्धार हुआ था । यह स्थान नौ छत्रियाँ नाम से विख्यात है और अब तो वहां भगवान महावीर स्वामी के मन्दिर का निर्माण हो जाने से दिनोंदिन उन्नति की ओर अग्रसर है। प्रसिद्ध दादावाड़ियों की नामावली जो स्तवनों में मिलती है उनमें नागौर की दादावाड़ी की स्तुति बड़ी भक्ति-प्रवणता के साथ की गई है। १. सतरहवीं शती के उ. साधकीति जी के सुप्रसिद्ध "विलसे ऋद्धि" स्तवना में "शुभसकल परचा पूरे, श्रीनागपुरे संकट चूरे" २. राजसागरकृत जिनकुशल सूरिस्तवन में "अरे लाल जोधपर ने मेड़त जैतारण ने नागोर रे लाल सोजत ने पालीपरै जालोर ने श्री साचोर रे लाल" ३. अभयसोम कृत जिनकुशलसूरिछन्द (गा० ३२) में "प्रभावना रिणीपुरै निसाण वाजता धुरै । भेटो नयर भट्टनेर जगत्रय सह हवैजेर ॥१८॥ "नागोर नाम दीपतौ दाणव देव जीपतो। तोरण तेम सोहए जगत्र मन मोहए ॥१६॥" ४. उदयरत्नकृत स्तवन (गा० १७) में “जी हो अहिपर आस्या पूरै जो हो सोजित मांहे सुविचारजी ॥११॥" ५. खुल्यालकृत (सं० १८२३) जिनकुशलसूरि छंद (गा० ७६) में "नागौर नमंत पाय जाय व्याधि नाम ए। वीकाणे पूर दीयंत कीध माल वाम ए॥५६॥" ६. जयचन्दकृत जिनकुशलसूरि छन्द में.-- "नागौर नगीनो सह जन लीनो व्यंतर भत भगंदा है। जो धन नर नारी उठ सवारी जाके पाय नमंदा हे।" ७. उपाध्याय क्षमाकल्याण गणि कृत श्री जिनकुशलसूरिस्तोत्र (गा० २२) में "नागोर योधपुर्यामुदयपुररिणो सोजिताख्यासुपुर्षः । पल्लीपुर्यां तिमा ममररारसि वा मेडता लाडपुर्याम् ।।" ८. ललितकीति शि. राजहर्ष कृत जिनकूशलसरि अष्टोतर शतस्थाने स्तुभ नाम गभित स्त० (गा०२६) में "जेसलमेर सकल जोधाणइ, नागोरई प्रणमइ नर वंद। मेदनीतटइ देखी मन उल्हसइ, देवलवाडइ जाणि दिणंद ॥४१॥" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 5 6 7 8