Book Title: Nagaur ke Jain Mandir aur Dadavadi
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Z_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf

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Page 1
________________ नागौर के जैन मन्दिर और दादावाड़ी श्री भंवरलाल नाहटा [द्वारा : अभय जैन ग्रन्थालय, नाहटों की गवाड़, बीकानेर (राज.)] राजस्थान के ऐतिहासिक और प्राचीनतम नगरों में नागौर शहर का भी प्रमुख स्थान है। संस्कृत ग्रन्थों में एवं अभिलेखों में व्यवहृत 'अहिपुर' और 'नागपुर' शब्द इसी के पर्याय हैं। इस परगने के खींवसर, कडलू (कुटिलकूप), डेह, रुण, कुचेरा (कूर्चपुर), भदाणा, सूरपुरा, ओप्तरां आदि संख्याबद्ध ग्रामों का इतिहास अनेकों वीर, मिष्ठ और साधुजनों की ज्ञात-अज्ञात कीति-गाथाओं से संपृक्त है। प्राचीनकाल में इस परगने को 'सपादलक्ष' या 'सवालक' देश के नाम से पुकारा जाता था । यहाँ की राज्यसत्ता कई बार मुस्लिम शासकों के हाथों में आई और परिणामत: नाना प्रकार के पट परिवर्तन हुए। कभी यह राज्य अपने पड़ोसी बीकानेर, जोधपुर राज्यों के साथ युद्धरत रहा और कभी मित्र रहा । कभी इसकी स्वतन्त्र सत्ता भी रही और चिरकाल तक जोधपुर राज्यान्तर्गत भी । अत: तोड़-फोड़ और नवनिर्माण के अनेक झौंके महते हुए इस नगर के अपनी प्राचीन स्थापत्यकला व पुरातत्त्व सामग्री को विशृंखल कर डाला। यही कारण है कि नागौर का कोई देवालय १५वीं शती से प्राचीन नहीं पाया जाता। जनरल कनिंघम ने लिखा है कि बादशाह औरंगजेब ने जितने मन्दिर यहाँ तो उससे भी अधिक मस्जिदें राजा वसिह ने तोड़ी । यही कारण है कि यहाँ कई फारसी लेख शहरसनाह की चुनाई में उल्टे-सुल्टे लगे हुए आज भी विद्यमान हैं। गुजरात के सुल्तान मुजफ्फरखा ने अपने भाई शम्सखाँ को नागौर की जागीर दी थी, जिसने यहाँ अपने नाम से शम्स मस्जिद और तालाब बनवाये तथा उसके पुत्र फिरोजखां ने नागौर का स्वामी होकर एक बड़ी मस्जिद का निर्माण करवाया जिसको महाराणा कुम्भा ने नागौर विजय करते समय नष्ट कर डाला था। नागौर में बहुत से हिन्दू और जैन मन्दिर हैं। हिन्दु मन्दिरों में वरमाया योगिनी का मन्दिर प्राचीन है, जिसके स्तम्भों पर सुन्दर खुदाई का कार्य है। सं० १६१८ और इसके सं०१६५६ के दो लेख बच पाये हैं। प्राचीनता और विशालता की दृष्टि से बंशीवाला मन्दिर महत्त्वपूर्ण है। विमलेश्वर शिव और मुरलीधरजी के मन्दिर की मध्यवर्ती दीवाल पर ११ श्लोक तया पंक्तयों में गद्य अभिलेख भी खा है। इस विषय में विशेष जानने के लिए मेरा "नागौर के बंशीवाला मन्दिर की प्रशस्ति" शीर्षक लेख (विशम्भरा वर्ष ४, अंक १-२) देखना चाहिए। नागौर से जैन धर्म का सम्बन्ध अतिप्राचीनकाल से है। ओसवाल जाति का नागौरी गोत्र एवं नागपुरीय तपागच्छ (पायचंद गच्छ) व नागौरी लूकागच्छ भी इसी नगर के नाम से प्रसिद्धि प्राप्त हैं। यहाँ धर्मघोषगच्छ का भी अच्छा प्रभाव था, कुछ वर्ष पूर्व तक उस गच्छ के महात्मा पोशाल में रहते थे। दिगम्बर समाज की भट्टारकों की गद्दी होने से वहाँ बड़ा समद्ध ज्ञान-भण्डार भी है जिसमें अनेक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों का संग्रह है तथा कई दिगम्बर जैन मन्दिर भी हैं। यहाँ के भट्टारक श्री देवेन्द्रकीतिजी कुछ वर्ष पूर्व अच्छे विद्वान हए हैं। ज्ञानभण्डार में लगभग १२ हजार ग्रन्थों का बहुमूल्य संग्रह है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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