Book Title: Murti Ki Siddhi Evam Murti Pooja ki Prachinta Author(s): Sushilsuri Publisher: Sushilsuri Jain Gyanmandir View full book textPage 7
________________ नांदियां तथा पड़ोस में नांणां ग्राम की भगवान महावीर की मूर्तियाँ उनके जीवित समय की हैं। गुजरात में श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ की मूत्ति तो भगवान श्रीकृष्ण के समय आज से पच्चीस हजार वर्ष पूर्व की प्रकट प्रभावी एवं अत्यन्त चमत्कारिक प्रमाणित हुई है। परन्तु मूत्ति का चमत्कार हर किसी को प्राप्त नहीं होता है। साक्षात् गुरु से भी ज्ञान प्राप्त करने हेतु शिष्य की पात्रता व उसकी श्रद्धाभक्ति की आवश्यकता होती है। अतः मूर्ति से चमत्कारी अनुभव तो कोई पुण्यात्मा विरला ही प्राप्त करता है जिसका मन निर्मल और आत्मा पवित्र होती है । महाभारत का प्रत्यक्ष उदाहरण है कि जो धनुर्विद्या अर्जुन ने साक्षात् गुरु द्रोणाचार्य के चरणों में बैठकर प्राप्त की, वही विद्या श्रद्धालु भील बालक एकलव्य ने बिना किसी शिल्प या वास्तुकला के स्थापित गुरु की काल्पनिक मूत्ति के समक्ष स्वयं ही प्राप्त कर ली इसलिए उसने उसका श्रेय गुरु को ही देते हुए गुरु-दक्षिणा में सम्पूर्ण विद्या ही समर्पित कर दी। रामायण का यह उदाहरण कितना महत्त्वपूर्ण है कि भरत ने श्री रामचन्द्रजी की चरण-पादुका सिंहासन पर स्थापित कर वर्षों तक शासन चला लिया। अन्यPage Navigation
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