Book Title: Mukundanandbhan
Author(s): Kashipati, Durgaprasad Pandit, Kashinath Pandurang Parab
Publisher: Nirnaysagar Press
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
मुकुन्दानन्दभाणः । (प्रताचीमवलोक्य ।) अयमिह
जरठ इव मरालो जर्जरामयूखैः
___ स्खलति शिशिरभानुः पश्चिमाम्भोधिपारे । (उर्ध्वमवलोक्य ।) अत्र पुनः
श्लथगरुत इवामूस्तत्र तत्रान्तरिक्षे
विरलविरलभासः किं च तारा लुठन्ति ॥ २९ ॥ कलङ्कदाशो गगनाम्बुराशौ प्रसार्य चन्द्रातपतन्तुजालम् । लग्नाडुमीनांल्लघु संजिवृक्षुश्चन्द्रप्लवस्थश्चरमाब्धिमेति ॥ ३० ॥ नभोवनं नक्तमसौ विगाह्य नक्षत्रसेनासहितः शशाङ्कः । कराग्रलग्नान्कतिचित्प्रहृत्य पान्थान्प्रभाते प्रपलायतेऽद्य ॥३१॥ अपि च ।
आलोकैरतिपाटलैरचरमां विस्तारयनिगदिश ___ नक्षत्रातिमाक्षिपद्भिरचिरादाशङ्कय सूर्योदयम् । पुञ्जीभूय भयादिवान्धतमसं मन्ये हिरेफच्छला
न्मीलन्नीलसरोरुहोदरकुटीकोणान्तरे लीयते ॥ ३२ ॥ तदितो निष्कुटवनाद्वहिरद्यैव गन्तव्यम् । (इत्युत्थाय वनप्राकारमुलक्य बीथों प्रविश्य हालीमवलोक्य च ।) व्यामिश्रैकैकबाहु प्रवलितप्टथुलैकैकचारूरुकाण्डं
देष्टादष्टाधरोष्टं दरशिथिलतनुश्लेषमालिङ्गच कान्ताः । शश्वन्निःश्वासवेगस्फुरितगुरुकुचद्वन्द्वसंवृष्टवक्षाः ।
श्रान्तः शेते रतान्ते सुखमिह सुकृती लीलया कामिलोकः।॥३३॥ किं च काश्चन पुनरिहैव निःशेषं व्यपनीय नीविवसनं मञ्जक्वणन्मेखलं
क्रीडान्दोलनखिन्नमध्यलतिकं किंचित्प्रकम्प्रस्तनम् ।
१. 'भवन' क. २. 'च' ख-ग-पुस्तकयो स्ति. ३. 'प्रचलित' ख. ४. 'दा दष्ट्वा' क.
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 ... 368