Book Title: Mithyattvi ka Adhyatmik Vikas
Author(s): Shreechand Choradiya
Publisher: Jain Darshan Prakashan

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Page 11
________________ [ 8 ] ही नहीं अपितु प्राणी मात्र तक थी। समता का ऐसा उजागर कोई विरल ही व्यक्ति हो सकता है। न दर्शन समिति कलकत्ता ने जैन दर्शन से सम्बंधित पुस्तकों के प्रकाशन का भी निर्णय लिया था। अपितु इसका पावन उद्देश्य एक अभाव को पूर्ति करना, बहत प्रवचन की प्रभावना करना तथा जैन दर्शन और वाङ्मय का प्रचार-प्रसार करना तथा इसके गहन-गम्भीर तत्त्वज्ञान के प्रति सर्व साधारण को आकृष्ट करना और इस तरह समाज की सेवा करना ही है। घर में श्री श्रीचन्दजी चोरडिया न्यायतीर्थ ने 'मिष्यात्वी का आध्यात्मिक 'विकास' नामक एक पुस्तिका लिखी है। प्रस्तुत ग्रन्थ का प्रतिपादन अत्यन्त प्राञ्जल एवं प्रभावक रूप में सूक्ष्मता के साथ किया गया है यह जैन सिद्धांत की निरुपण करने वाली अद्भूत कृति है । 'मिथ्यात्वी का आध्यात्मिक विकास' यह पुस्तक अनेक विशिष्टताओं से युक्त है। एक मिथ्यात्वी भी सदअनुष्ठानिक क्रिया से अपना आध्यात्मिक विकास कर सकता है। साम्प्रदायिक मत भेदों की बातें या तो आई ही नहीं है अथवा भिन्न-भिन्न दृष्टिकोणों का समभाव से उल्लेख कर दिया गया है। श्री चोरहियाजी ने विषय का प्रतिपादन बहुत ही सुन्दर और हलस्पी ढंग से किया है। विद्वज्जन इसका मूल्यांकन करे । निःसंदेह दार्शनिक बगत के लिए चोरडियाजी की यह एक अप्रतिम देन है। सचमुच श्री चोरडियाजी एक नवोदित और तरुण जैन विद्वान है, जिन की अभिरुचि इस दिशा में श्लाघ्य है । क्रिया कोश के बाद यह 'मिथ्यात्वी का आध्यात्मिक विकास' का प्रकाशन जैन दर्शन समिति, कलकत्ता से हो रहा है । इस महत्वपूर्ण ग्रन्थ के प्रकाशन में अर्थ सहाय देना भगवतीलाल सिसोदिया ट्रष्ट, जोधपुर ने स्वीकार किया है । यह अत्यन्त प्रसन्नता का विषय है। भगवतीलाल सिसोदिया ट्रष्ट के मैनेजिग ट्रष्टी श्री जबरमलगी भंडारी को विशेष रूप से वयवाद देते है जिन्होंने 'मिथ्यात्वो का आध्यात्मिक विकास' के प्रकाशन में बार्षिक सहायता कर हमें प्रोत्साहित किया। Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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