Book Title: Meerabai
Author(s): Shreekrushna Lal
Publisher: Hindi Sahitya Sammelan

View full book text
Previous | Next

Page 159
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५२ मीराँबाई है । सारांश यह कि मीराँ का अपने भगवान् के साथ प्रणय प्रेम का सम्बंध है और वह प्रेम भी साधारण नहीं जीवनव्यापी चिरंतन विरह का रूप धारण करने वाला प्रेम है । इसीलिए इस प्रेम को साधारण प्रेम की संज्ञा न देकर प्रेम-साधना का नाम दिया गया है। यह प्रेम सचमुच ही एक साधना है और वह भी साधारण साधना नहीं, सम्भवतः इससे ऊँची कोई साधना नहीं है। मीरा के शब्दों में ही उस साधना का एक वर्णन सुनिए :-- सखी मेरी नींद नसानी हो । पिय को पंथ निहारत सिगरी रैण बिहानी हो । सब सखियन मिल सीख दई मन एक न मानी हो । far देख्याँ कल नाहिं पड़त जिय ऐसी ठानी हो ॥ अंग अंग ब्याकुल भई, मुख पिय पिय बानी हो । तर वेदन विरह की वह पीर न जानी हो । ज्यूँ चातक घन को रटै; मछरी जिमि पानी हो । मीराँ व्याकुल विरहिणी सुध बुध बिसरानी हो || यह चिरंतन विरह को प्रेम-साधना महत्तम प्रेम की प्राण है, इसी के द्वारा वद्द अमरत्व प्राप्त करके युग-युग में कितने काव्य और कितने अमूल्य, संचित कर जाता है, यह प्रेम-साधना मिलन के अभाव में ही प्रतिपूर्ण और दारुण व्यथा में ही प्रति मधुर है । प्रेम की चरम परिणति विरह में होती है और विरह की चरम परिणति इस चिरंतन विरह - साधना में । मीरों इसी चिरंतन विरह-साधना में महान् हैं । उनकी इस प्रेम साधना अथवा विरह - साधना की तुलना केवल राधा की विरह- साधना से की जा सकती है। बंगाल के वैष्णव कवियों ने राधा के प्रेम और विरह की बड़ी सुंदर और मधुर रचनाएँ प्रस्तुत की हैं। मैथिल कोकिल विद्यापति और सच्चे कवि हृदय सूर ने भी राधा के प्रेम और विरह की मर्मस्पर्शी व्यंजना की है । यहाँ दोनों की एक तुलनात्मक समीक्षा अप्रासंगिक न होगी । १. देखिए शरच्चन्द्र चटर्जी लिखित पत्र-निर्देश का अंतिम पैराग्राफ । For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188