Book Title: Manushya Jati ka Sarvottam Ahar Shakahar Author(s): Shikharchandra Kochar Publisher: Z_Hajarimalmuni_Smruti_Granth_012040.pdf View full book textPage 2
________________ शिखरचन्द्र कोचर : मनुष्य-जाति का सर्वोत्तम आहार : शाकाहार : ४७१ तथा: "अपरिमितैय॑हामते कारणर्मासं सर्वभक्ष्यम्. सर्वभूतात्म भूतानुयागन्तुमेनका सर्व जन्तु प्राणिभूतसंभूतंभूनमांसं कथामिव भचयं ॥" - लंकावतार सूत्र ८०. अर्थात् सब प्रकार का मांस दयावान् के लिए अगणित कारणों से अभक्ष्य है. जो सर्व प्राणियों को अपने समान जानने वाला है, वह इन सब प्राणियों के वध से उत्पन्न हुए मांस को कैसे भक्ष्य समझेगा. महात्मा ईसा मसीह ने भी कहा है कि : “देखो मैंने तुम्हें हरएक बीज तथा उपजाऊ वनस्पति दी है, जो पृथ्वी पर पैदा होती है, और हरएक वृक्ष भी दिया है जिस वृक्ष में उपजाऊ बीज के फल लगे हैं, ये सब तुम्हारे लिए भोजन सामग्री हैं .. तुम न तो चर्बी और न खून खाओगे .” —लेविटिक्स ३,५,२७. महात्मा जरथुस्त ने भी कहा है कि : “प्रत्येक व्यक्ति को प्रत्येक प्राणी का मित्र होना चाहिए........दुष्ट व्यक्ति जो अनुचित रूप में पशुओं और भेड़ों तथा अन्य चौपायों की घोर हत्या करता है, उसके अवयव नष्ट किये जायेंगे. -आर्दविरफ १७४-१६२. पैगम्बर मुहम्मद साहब ने कहा है कि : "हमने स्वर्ग से मेंह बरसाया जिससे बाग पैदा हुए और अनाज की फसल उगी, और खजूरों से लदे हुए लम्बे वृक्ष उत्पन्न हुए, जो मनुष्य के लिये भोजन होंगे. -कुरानसूराकाफ ६,११. जो दूसरे के प्राणों की रक्षा करता है, वह गोया तमाम मानव-जाति के प्राणों की रक्षा करता है.”—कुरान, ५. सिख धर्म के प्रदर्तक, गुरु नानक ने कहा है : "मांस मांस सब एक है, मुर्गी हिरनी गाय । अांख देख नर खात है, ते नर नर कहिं जाय ॥" महात्मा कबीर ने कहा है : "मांस मछलियां खात हैं, सुरा-पान के हेत । ते नर नरकहिं जायंगे, माता-पिता समेत ॥ तिलचर मछली खायके, कोटि गऊ दे दान । काशी करवत ले मरे, तो भी नरक निदान ॥" शाकाहार का प्रचार एवं प्रसार संसार के सभी देशों एवं समस्त कालों में रहा है. ग्रीस-देश के प्रसिद्ध दार्शनिक विद्वानों पिथागोरस, इम्पीडोक्लिस, प्लेटो, सोक्रेटिज, ओविड, सेनेका, पोफिरी, प्लूटार्क आदि ने तथा आंरिजेन, टरट्यूलियन, क्रिसोस्टोम तथा अलेक्जेंड्रिया के क्लीमेंट जैसे ईसाई धर्म-गुरुओं ने भी शाकाहार का प्रतिपादन किया है. भारतवर्ष के महान् सम्राट अशोक ने अपने विशाल साम्राज्य में स्थान-स्थान पर इस आशय के शिला-लेख उत्कीर्ण करवाये थे, कि कोई व्यक्ति किसी प्राणी की हत्या न करे. महान् मुगल सम्राट अकबर ने भी आदेश दिया था कि उसके साम्राज्य में विशेष पर्वो के अवसरों पर किसी प्रकार का प्राणी-वध न किया जाय. संसार के प्रसिद्ध विद्वान् स्वीडन बोर्ग, टाल्सटाय, वाल्टेयर, मिल्टन, वेस्ले, आइजक न्यूटन, बूथ, आइजक पिटमैन, बर्नडशा इत्यादि शाकाहारी थे, और उन्होंने अपनी रचनाओं में शाकाहार का पूर्ण रूपेण प्रतिपादन किया है. मैं विस्तारभय से उनके विचारों को इस लेख में उद्धृत करने में शसमर्थ हूं. मांसाहार के पक्ष में कुछ लोग यह युक्ति देते हैं कि मांसाहार से शक्ति बढ़ती है परन्तु यह युक्ति निस्सार है, क्योंकि हम देखते हैं कि शाकाहारी हाथी किसी मांसाहारी प्राणी से कम-शक्तिशाली नहीं होता. संसार के अनेक डाक्टरों तथा वैज्ञानिकों ने इस बात पर मतैक्य प्रकट किया है कि फलों तथा शाक-भाजी एवं गो-दुग्ध में मांस की अपेक्षा अधिक पोषक तत्त्व विद्यमान रहते हैं, जिनके सेवन से मनुष्य की शक्ति, स्फूति तथा बुद्धि की अभिवृद्धि होती है, और मांस-सेवन से जो नाना प्रकार की हानियां होती हैं, उनका शाकाहार में सर्वथा अभाव पाया जाता है. शाकाहारी मनुष्य में मांसाहारी मनुष्य की अपेक्षा उदारता सहनशीलता, धैर्य, परिश्रम-शीलता इत्यादि गुणों का अधिक समावेश दृष्टि-गोचर होता है. प्राचीन समय में भारतवर्ष की सर्वांगीण उन्नति का प्रधान कारण भारतीय जनता का अहिंसा-धर्म का पूर्ण रूप से पालन ही था. संसार में शांति एवं समृद्धि का सर्वोत्कृष्ट साधन अहिंसा ही है,और यदि हमें राष्ट्रों, के मध्य प्रेम शान्ति एवं सौहार्द की स्थापना करनी अभीष्ठ है, तो हमें संसार के सभी धर्म-प्रवर्तकों द्वारा समर्थित अहिंसा एवं शाकाहार को अपनाना ही पड़ेगा. Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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