Book Title: Mangal Mantra Namokar
Author(s): 
Publisher: Z_Jain_Vidyalay_Granth_012030.pdf

View full book text
Previous | Next

Page 3
________________ स्थित पंच उच्च आत्माओं का अथवा यक्षादि शासन देवों का पुनरुक्त स्वरों को निकाल देने के पश्चात् रेखांकित स्वरों को ग्रहण सत्कार किया जाये, वह मन्त्र है। इन तीनों व्युत्पत्तियों के द्वारा मन्त्र किया तोशब्द का अर्थ अवगत किया जा सकता है। णमोकार मन्त्र-यह अ आ इ ई उ ऊ (र) ऋऋ (ल) ल ल ए ऐ ओ औ अं अः। नमस्कार मन्त्र है, इसमें समस्त पाप, मल और दुष्कर्मों को भस्म व्यंजनकरने की शक्ति है। बात यह है कि णमोकार मन्त्र में उच्चरित ण + म् + र् + ह् + त् + ण् + ण् + म् + स् + द् + ध् + ध्वनियों से आत्मा में धन और ऋणात्मक दोनों प्रकार की विद्युत् ण् + ण् + म् + य् + ण् + ण् + म् + व् + ज् + शु + य् + ण शक्तियाँ उत्पन्न होती हैं, जिससे कर्मकलंक भस्म हो जाता है। यही कारण है कि तीर्थकर भगवान भी विरक्त होते समय सर्वप्रथम इसी ___ + ण् + म् + ल् + स् + व् + व् + स् + ह + ण । महामन्त्र का उच्चारण करते हैं तथा वैराग्यभाव की वृद्धि के लिए घ आये हुए लोकान्तिक देव भी इसी महामन्त्र का उच्चारण करते हैं। यह अनादि मन्त्र है, प्रत्येक तीर्थंकर के कल्पकाल में इसका पुनरुक्त व्यंजनों के निकाल देने के पश्चात्अस्तित्व रहता है। कालदोष से लुप्त हो जाने पर अन्य लोगों को ण + म् + र् + ह् + ध् + स् + य् + र + ल् + व् + ज् + तीर्थकर की दिव्यध्वनि-द्वारा यह अवगत हो जाता है। घ + है। इस अनुचिन्तन में यह सिद्ध करने का प्रयास किया गया है कि ध्वनिसिद्धान्त के आधार पर वर्गाक्षर वर्ग का प्रतिनिधित्व करता णमोकार मन्त्र ही समस्त द्वादशांग जिनवाणी का सार है, इसमें है। अत: घ् = कवर्ग, झ् = चवर्ग, ण् = टवर्ग, ध् = तवर्ग, समस्त श्रुतज्ञान की अक्षर संख्या निहित है। जैन दर्शन के तत्त्व, म् = पवर्ग, य र ल व, स् = श ष स ह । पदार्थ, द्रव्य, गुण, पर्याय, नय, निक्षेप, आस्रव, बन्ध आदि इस मन्त्र अत: इस महामन्त्र की समस्त मातृका ध्वनियाँ निम्न प्रकार हुईं। में विद्यमान हैं। समस्त मन्त्रशास्त्र की उत्पत्ति इसी महामन्त्र से हुई अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ ल ल ए ऐ ओ औ अं अः क ख है। समस्त मन्त्रों की मूलभूत मातृकाएँ इस महामन्त्र में निम्नप्रकार ग् घ् ङ् च् छ् ज् झ् ञ् ठ् ड् ढ् ण् त् थ् द् ध् न् प् फ् ब् भ् वर्तमान हैं। मन्त्र पाठ : म् य र ल व श् ष् स् ह् "णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं । उपर्युक्त ध्वनियाँ ही मातृका कहलाती हैं। जयसेन प्रतिष्ठापाठ णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सब्ब-साहूणं ।।". में बतलाया गया है : विश्लेषण : “अकारादिक्षकारान्ता वर्णाः प्रोक्तास्तु मातृकाः । सष्टिन्यास-स्थितिन्यास-संहतिन्यासतस्त्रिधा ।।३७६।।" ण + अ + म् + ओ + अ + र् + इ + ह् + अं + त् + आ + ण् + अ + ण् + अ + म् + ओ + स् + इ + द् + ध् + - अकार से लेकर क्षकार (क् + ष् + अ) पर्यन्त मातृकावर्ण आ + ण् + अं+ ण् + अ + म् + ओ + आ + इ + र् + कहलाते हैं। इनका तीन प्रकार का क्रम है - सृष्टिक्रम, स्थितिक्रम और संहारक्रम। इ + य् + आ + ण् + अं+ ण् + अ + म् + ओ + उ + व् णमोकार मन्त्र में मातृका ध्वनियों का तीनों प्रकार का क्रम + अ + ज् + झ् + आ + य् + आ + ण् + अं + ण् + अ सन्निविष्ट है। इसी कारण यह मन्त्र आत्मकल्याण के साथ लौकिक + म् + ओ + ल् + ओ + ल् + ओ + ए + स् + अ + व् अभ्युदयों को देनेवाला है। अष्टकर्मों के विनाश करने की भूमिका + व् + अ + स् + आ + ह् + ऊ + ण् + अं । इसी मन्त्र के द्वारा उत्पत्र की जा सकती है। संहारक्रम कर्मविनाश इस विश्लेषण में से स्वरों को पृथक् किया तो- . को प्रकट करता है तथा सृष्टिक्रम और स्थितिक्रम आत्मानुभूति के अं + ओ + अ + इ + अं + आ + अं + अ + ओ + इ + साथ लौकिक अभ्युदयों की प्राप्ति में भी सहायक है। इस मन्त्र की अ + अं + अ + एक महत्वपूर्ण विशेषता यह भी है कि इसमें मातृका-ध्वनियों का ओ + आ + इ + इ + अ + अं+ अ + ओ + 3 + अ + आ तीनों प्रकार का क्रम सनिहित है, इसलिए इस मन्त्र से मारण, मोहन और उच्चाटन तीनों प्रकार के मन्त्रों की उत्पत्ति हुई है। बीजाक्षरों की ऐई ओ निष्पत्ति के सम्बन्ध में बताया गया है : + आ + अं+ अ + ओ+ ओ + ए + अ + अ + आ + ऊ "हलो बीजानि चोक्तानि स्वराः शक्तय ईरिताः" ।।३७७।। अ: + अं। शिक्षा-एक यशस्वी दशक विद्वत खण्ड/३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5