Book Title: Manav Sanskruti Me Vrato Ka Yogdan Author(s): Amarmuni Publisher: Z_Panna_Sammikkhaye_Dhammam_Part_01_003408_HR.pdf View full book textPage 8
________________ हमारे सभी व्रत आत्म-साधना के सुन्दर प्रयास हैं। अन्दर के सुप्त ईश्वरत्व को जगाने की साधना है। मानव शरीर नहीं है, आत्मा है, चैतन्य है, अनन्त गुणों का अखण्ड पिण्ड है। लोक-पर्व शरीर के आसपास घूमते हैं, किन्तु लोकोत्तर पर्व प्रात्मा के मूल केन्द्र तक पहुँचते हैं। शरीर से प्रात्मा में, और आत्मा से अन्त रहित निज शुद्ध सत्तारूप परमात्मा में पहुँचने का लोकोत्तर संदेश, ये व्रत देते हैं। इनका सन्देश है कि साधक कहीं भी रहे, किसी भी स्थिति में रहे, परन्तु अपने लक्ष्य को न बदले, अपने अन्दर के शुद्ध परमात्म-तत्त्व को न भूले / 340 Jain Education Intemational पन्ना समिक्खए धम्म www.jainelibrary.org For Private & Personal Use OnlyPage Navigation
1 ... 6 7 8