Book Title: Mahobaki Jain Pratimaye
Author(s): Shailendra Rastogi
Publisher: Z_Kailashchandra_Shastri_Abhinandan_Granth_012048.pdf

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Page 4
________________ मुखमात्र ही दीखता है। यहाँ चवरधारियोंका अभाव है और उसी स्थानपर यक्षी पद्मावती एवं यक्ष धरणेन्द्रको बनाया गया है । ऊपर सर्प फणोंपर त्रिछत्र है । इससे ऊपर कमठ है तथा उसके साथ ही नीचे दोनों ही ओर आती धारायें तथा नीचे मालाधारी विद्याधर है। जी-३१२-यहाँ अम्बिका (५० x २० सेमी०) की चतुर्भुजी बनाया गया है जो क्रमशः दर्पण, बालक, आमोंका गुच्छा, पुस्तक (आयताकार) या वाद्य जैसी वस्तु लिये है। नीचे सिंह है, एक अनुचर खड़ा है जिसके उठे हुये हाथपर बालकका पैर है । दोनों ओर उपासक-उपासिका हैं। विद्याधरके स्थानपर दोनों ओर मालाधारिणी विद्याधरी है । अम्बिकाके मस्तकपर आम्रगुच्छों सहित वृक्ष बना है। इसके ऊपर ध्यानासीन नेमिनाथ विराजमान हैं । ये ध्यानस्थ हैं । यह भूरे प्रस्तरको प्रतिमा है। _जी-३१३-यह मूर्ति पार्श्वनाथकी (८२ ४ २८ सेमी०) कार्योत्सर्ग मुद्रामें श्वेत संगमरमरपर बनायी गयी है। चरण चौकीको फलोंसे सजाया गया है। दोनों ओर एक-एक उपासक-उपासिका है । चंवरधारी त्रिभंग मुद्रामें खड़े हैं। इनके केश विन्यास, किरीट तथा मुख मुद्रा देखने योग्य है। मूल प्रतिमाके दोनों पार्श्वपर सर्पको दिखलाया है। किन्तु ऊपर सर्प फण नहीं बनाये हैं। मूल प्रतिमाकी टाँगें सीधी हैं । घुटने स्पष्ट नहीं हैं। चित्र २. पार्श्वनाथ, १२०० ई०, महोबा जी-३१५-यह त्रितीर्थी (२५ x १६ सेमी०) है। यहाँ मूलनायक ऋषभनाथ तथा ऊपर दोनों ओर एक-एक तीर्थंकर ध्यानस्थ हैं। यह सफेद प्रस्तरपर बनी है। तीनों ही जिनध्यानमग्न बैठे हैं। नीचे नरवाहना चक्रेश्वरी ऊपर यक्ष बने हैं। बाँयी तरफका चँवरधारी खण्डित है। इसपर एक लेख श्री सम्वत् ११०३ पखलस्मरो...""है। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International

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