Book Title: Mahavira Vardhaman
Author(s):
Publisher: ZZZ Unknown
View full book text
________________
जयो । जितुर्धपिरो व्ययः॥४४॥ विभावसुर संतु/स्वयं मनुपुरातनःपरमात्मा परंज्योति त्रिजगत्परमेश्वरादेशा इतिश्रीयकृत दिव्य भाषापतिर्दिव्या परतवावरत शासन तासा परमं ज्योति धम्ममसोदमीम्परा श्रीप तिर्भगवान चरन्नाविरजा शुचितीर्थ कन के क्लीशान पर जाई नांत कोमलः॥४॥ अनंत दि निर्मानात्मा स्वयं बुद्धः प्रजनि मुक्तसको निरा बाहो निःय्कलो भुवनोश्वर (४चा निरंजनो जग ज्योति निस्कनिरामय प्रचल स्थितिरसोर म्यः कूटस्थस्थानुरक्षयामग्नीनी मो नेता प्रणेता न्यायशास्त्र कत्ः शास्ताधर्म्मपति धम्मधर्मात्माधर्मतिर्यकन् । ४. वयध्वनेो व याधीशोर के बायुधपतिर्भ वयभांकोव बोद्भवः॥५१॥ हिरण्यनामिनासा मतम्मन भावेन प्रभवो विभवोभाभिवो भावोभवातकः॥हिरण्यगर्भः श्रीगर्भः जम्म निविभवो भवः स्वयंप्रभुभुतीमा मनना थो जगत्स्वभुः । ५३ । सर्वा दिसर्व दिवतार्व सर्वज्ञस चंदर्शिनः । सर्वी सासर्व लोके सा सर्वस सर्व लोक जित्॥५४॥ सुगतिः शुश्रुतःसुश्रून्
..
2031217
13

Page Navigation
1 ... 1102 1103 1104 1105 1106 1107 1108 1109 1110 1111 1112 1113 1114 1115