Book Title: Mahavira Siddhanta aur Updesh Author(s): Amarmuni Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra View full book textPage 9
________________ [ ८ ] अपने साधु श्रावक - वर्ग में स्थान दिया । फलतः मूक पशुओं का निर्दयता से यज्ञ में होने वाला वध रुका । पण्डितवर्ग, क्षत्रियवर्ग और साधारणवर्ग के लोगों के जीवन में अद्भुत परिवर्तन हुआ । पशुपक्षियों को भी शान्ति की सांस मिली । क्रान्ति के इस प्रकाशमय सूर्य ने मानव जगत् की अमानवीयता, क्रूरता और शोषण पर आधारित समस्त मान्यताओं के अन्धकार को विच्छिन्न कर दिया । राजा बने हुए लोग एकाधिकार में मत होकर अपनी मनमानी करते और आये दिन युद्ध ठान बैठते, अपने भोग-विलासों में मस्त रहते, भगवान् महावीर से उन्हें राष्ट्र में सहजीवन और सह अस्तित्व की प्रेरणा मिली। कई जनपदों में गणराज्य की नींव पड़ी और कई राजाओं, राजकुमारों एवं राजरानियों को गृहस्थधर्म की एवं कइयों को साधु-धर्म की प्रेरणा मिली। उनके जीवन का कायापलट हो गया । सचमुच, महावीर के तीर्थकरकाल की इन समस्त कान्तिकारी घटनाओं का जीता जागता वर्णन कविवजी ने प्रस्तुत किया है। महावीर ने अपनी साधना के बल पर कैसे युग बदला, किस प्रकार मानव जाति को सुखशान्ति से जीने की कला सिखाई ? किस प्रकार उसकी घातक मान्यताओं में परिवर्तन THE Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 ... 172