Book Title: Mahavir ki Drushti me Nari Author(s): Vimla Mehta Publisher: Z_Sajjanshreeji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012028.pdf View full book textPage 3
________________ १६४ भगवान महावीर की दृष्टि में नारी : विमला मेहता में कई प्रकार की दासियों जैसे धाय, क्रीतदासी, कुलदासी, ज्ञातिदासी आदि की सेवा प्राप्त की थी व उनके जीवन से भी परिचित थे। इस प्रथा का प्रचलन न केवल सुविधा की खातिर था, बल्कि दासियाँ रखना वैभव व प्रतिष्ठा की निशानी समझा जाता था। जब मेघकुमार की सेवा-सुश्रूषा के लिए नाना देशों से दासियों का क्रय-विक्रय हुआ तो महावीर ने खुलकर विरोध किया और धर्म-सभाओं में इसके विरुद्ध आवाज बुलन्द की। बौद्ध आगमों के अनुसार आम्रपाली वैशाली गणराज्य की प्रधान नगरवधू थी। राजगृह के नैगम नरेश ने भी सालवती नाम की सुन्दरी कन्या को गणिका रखा। इसका जनता पर कुप्रभाव पड़ा और सामान्य जनता की प्रवृत्ति इसी ओर झुक गई। फलस्वरूप गणिकाएँ एक ओर तो पनपने लगीं, दूसरी ओर नारी वर्ग निन्दनीय होता गया। भिक्षुणी का आदर जब महावीर ने भिक्षुणी संघ की स्थापना की तो उसमें राजघराने की महिलाओं के साथ दासियों व गणिकाओं-वेश्याओं को भी पूरे सम्मान के साथ दीक्षा देने का विधान रखा। दूसरे शब्दों में महातीर के जीवन-काल में जो स्त्री गणिका, वेश्या, दासी के रूप में पुरुष वर्ग द्वारा हेय दृष्टि से देखी जाती थी, भिक्षणी संघ में दीक्षित हो जाने के पश्चात् वह स्त्री समाज की दृष्टि में वन्दनीय हो जाती थी..." । नारी के प्रति पुरुष का यह विचार परिवर्तन युग-पुरुष महावीर की देन है। भगवान बुद्ध ने भी भिक्षुणी संघ की स्थापना की थी, परन्तु स्वयमेय नहीं आनन्द के आग्रह से और गौतमी पर अनुग्रह करके । पर भगवान महावीर ने समय की माँग समझ कर परम्परागत मान्यताओं को बदलने के ठोस उद्देश्य से संघ की स्थापना की। जैन शासन-सत्ता की बागडोर भिक्ष-भिक्ष णी, श्रावक-श्राविका इस चतुर्विध रूप में विकेन्द्रित कर तथा पूर्ववर्ती परम्परा को व्यवस्थित कर महावीर ने दुहरा कार्य किया। ___ इस संघ में कुल चौदह हजार भिक्षु, तथा छत्तीस हजार भिक्षुणियाँ थीं। एक लाख उनसठ हजार श्रावक और तीन लाख अठारह हजार श्राविकाएँ थीं । भिक्षु संघ का नेतृत्व इन्द्रभूति के हाथों में था तो भिक्ष णी संघ का नेतृत्व राजकुमारी चन्दनबाला के हाथ में था। पुरुष की अपेक्षा नारी सदस्यों की संख्या अधिक होना इस बात का सूचक है कि महावीर ने नारी जागृति की दिशा में सतत् प्रयास ही नहीं किया, उसमें उन्हें सफलता भी मिली थी। चन्दनबाला, काली, सुकाली, महाकाली, कृष्णा, महाकृष्णा आदि क्षत्राणियाँ थीं तो देवानन्दा आदि ब्राह्मण कन्याएँ भी संघ में प्रविष्ट हुईं। "भगवती-सूत्र" के अनुसार जयन्ती नामक राजकुमारी ने महावीर के पास जाकर गम्भीर तात्त्विक एवं धार्मिक चर्चा की थी। स्त्री जाति के लिए भगवान् महावीर के प्रवचनों में कितना महान् आकर्षण था, यह निर्णय भिक्षुणी व श्राविकाओं की संख्या से किया जा सकता है । नारी जामरण : विविध आयाम गृहस्थाश्रम में भी पत्नी का सम्मान होने लगा तथा शीलवती पत्नी के हित का ध्यान रखकर कार्य करने वाले पुरुष को महावीर ने सत्पुरुष बताया। सप्पुरिसो...""पुत्तदारस्स अत्थाए हिताय सुखाय होति......."विधवाओं की स्थिति में सुधार हुआ । फलस्वरूप विधवा होने पर बालों का काटना आवश्यक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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