Book Title: Mahavir ke Samsamayik Mahapurush Author(s): Sohanraj Kothari Publisher: Z_Mohanlal_Banthiya_Smruti_Granth_012059.pdf View full book textPage 3
________________ स्व: मोहनलाल बाठिया स्मृति ग्रन्थ प्रभु जरथुस्त्र ईसा से ६०० वर्ष पूर्व पूर्वी ईरान व केस्पियन समुद्र के दक्षिण-पश्चिम स्थित माड़िया नाम की जाति के मगी नायक गोत्र में पुरोहितो के घर मे जरथुस्त्र का जन्म हुआ। इनके जीवन के तीस वर्षों का पूरा विवरण नहीं मिलता। यूनान के वैक्टिया राज्य के राजा वीरतास्प पर इनके उपदेशों का अच्छा असर पड़ा और उसने इनकी भावना देश-विदेश में फैलाई। सत्तर वर्ष की आयु में जब बलख में मन्दिर की वेदी पर प्रार्थना कर रहे थे तो उनके विरोधियो ने इनपर हमला बोल दिया व इनकी बलि ले ली। इनसे पारसी धर्म की स्थापना हुई जिसका पवित्र आदर्श है - हुमत (सदविचार), हूरक्त (सत्यवचन) एवं हुरश्त (सतकर्म)। इस धर्म में ईश्वर की उपासना की जाती है जो 'अहुरमज्द' (जड़ और चेतन जगत का स्वामी) के नाम से पुकारा जाता है। इनके अनुसार ईश्वर ने सत की रचना करी। और सत्य ही जीवन है, प्रकाश है, सभी सदगुणों का समावेश है। असत इसका विलोम है। मनुष्य को चाहिये वह सत्य को ग्रहण करे व असत का त्याग करे। ईश्वर (अहुरमज्द) के सात प्रमुख अंग माने गए है :- (१) वहमन (भक्ति) (२) अपवहिश्त (पवित्रता, सत्य ज्ञान-मार्ग ) (३) शह खंम (शक्ति, सामर्थ्य कर्म मार्ग) (४) स्वेदारमत (नम्रता, विश्वास) (५) स्वरदात -पूर्णता (६) अमरदात (अमरता) (७) अहूरमज्द (परम प्रभु)। पारसियों का धर्मग्रन्थ है अवेस्ता जो प्रभु जरथुस्त्र की वाणी का संकलन है। सारी गाथाएं उपयुक्त सात अंगों के विस्तृत विवेचन को समाहित किये हुए है। महात्मा लाओत्से आज से अढाई हजार वर्ष पूर्व चीन के त्च्यु प्रदेश में ली परिवार में लाओत्से का जन्म हुआ। कहते है कि पैदा होते समय लाओत्से के बाल सफेद थे जिससे लोगों को लगा कि वह असाधारण बुद्धि वाला होगा। चालीस वर्ष बीतने के बाद लाओत्से को 'कोओ' के सरकारी गुप्त रिकार्ड के रक्षक की नौकरी मिली। वह निर्लिप्त भाव से अपने काम में लगा रहा। वह नियुक्तिमार्गी था। ध्यान, चिन्तन, मनन उसका जन्मजात स्वभाव था। उसके सीधे-सादे सरल व्यक्तित्व से दांव-कपट बिल्कुल अछूते थे व राजनीति के दांव-पेंचों से उसे विरक्ति हो गई - वह राज्य छोड़कर चला गया पर क्वानियन दर्रे के द्वारपाल ने उसे रोक दिया - उनके प्रेम भरे आग्रह को टाला नहीं जा सका। उस महापुरूष ने ४६६ वचनो की पांच हजार शब्दों में 'ताओ-तेह-किग- नामक पुस्तक की रचना की जो आज भी ताओ धर्म 25000005888888868 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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