Book Title: Mahavir ka Sarvodaya Shasan Author(s): Sumeruchand Diwakar Shastri Publisher: Z_Tirthankar_Mahavir_Smruti_Granth_012001.pdf View full book textPage 8
________________ नहीं अपरिग्रह के समर्थन में कबीर की वाणी आज के व्यक्त करने में असमर्थ है, अतः तुम्हारी दृष्टि में यह गगनचुबी भवन निर्माताओं को चेतावनी देती है, बात रहनी चाहिए कि मैंने सत्य का एक अंश ग्रहण कहा चुनाव में दिया लावी भीत उसार // किया है, वह पूर्ण सत्य नहीं है। दूसरे व्यक्ति ने सत्य के / घर तो साढे तीन हथ धना कि पौने चार // अन्य अंश को ग्रहण किया है। उसकी दृष्टि से वह भी भगवान महावीर ने आत्मा को उसके उत्थान तथा सत्य है / सत्य पर मेरा सर्वाधिकार (monopoly) पतन में स्वतंत्र कहा है / सत्तचूड़ामणि में कहा है- नहीं है। इस समन्वय दृष्टि को स्याद्वाद दर्शन कहते त्वमेव कर्मणां कर्ता भोक्ता च फलसंततेः / हैं / सन् 1935 में मैं गाँधीजी से वर्धा के आश्रम में भोक्ता च तात कि मुक्ती स्वाधीनायां न चेष्ट से मिला था उस समय उन्होंने कहा था, "जैन धर्म का // 11-45 // स्याद्वाद सिद्धान्त मुझे अत्यन्त प्रिय है।" कबीर ने हे आत्मन् ! तू ही अपने कर्मों को बांधता है. उनके सुन्दर बात कही है-- फलों को तू ही भोगता है तथा तु ही उनकर्मों का नदिया एक घाट बहुतेरे। क्षय करने की क्षमता संपन्न है। इस प्रकार तेरी मुक्ति कहत कवीर वचन के फेरे। तेरे हाथ में है, उसके लिए क्यों नहीं चेष्टा करता है ? इस चिंतन पद्धति के द्वारा धामिक मैत्री का महा मुक्ति मार्ग प्रासाद निर्माण किया जा सकता है। भगवान ने कहा, शक्ति रूप से संसारी जीव परमात्मा है, कर्मों के कारण ___ तत्वार्थ सूत्र में कहा है 'सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्राणि वह दीन बन रहा है। परमात्म प्रकाश में कहा है-- मोक्षमार्ग' :--सम्यग्दर्शन (आत्मश्रद्धा), सम्यग्ज्ञान एहु जि अप्पा सो परमप्पा कम्मविसेसे जायउ जप्पा। (आत्मज्ञान) तथा सम्यक्चारित्र (आत्म स्वरूप में जामह जाणह अप्पे अप्पा तामह सो गि देउ परमप्पा। स्थिरता) में तीनों मोक्ष के मार्ग है। इसे ही भक्ति, ज्ञान तथा वैराग्य का संगम रूप त्रिवेणी कहा जाता है। यह आत्मा यथार्थ में परमात्मा है, कर्मों के कारण टेनीसन ने इस रत्नत्रय नाम से विख्यात जैन तत्वज्ञान वह संसारी आत्मा बनता है। वह जब अपनी आत्मा को इस प्रकार कहा है-- को अपने रूप में जानता है तब वह परमात्मा हो जाता Self reverence, Self-knowledge Self-Control है। These thre alone lead life to Soverign power. सारआत्मश्रद्धा, आत्मज्ञान तथा आत्म निमंत्रण (सयम) सर्वोदय के लिए भगवान ने कहा थाये तीनों मिलकर जीव को पूर्ण शक्ति संपन्नता (परमात्म अभयं यच्छ जीवेषु कुरु मैत्री मनिन्दिताम / प्रदान करते हैं। पश्यात्म सदृशं विश्वं जीवलोकं चराचरम् / / समन्वय दृष्टि संपूर्णजीवों को अभय प्रदान करो, सबके प्रति निर्मल भगवान ने वस्तु को अनंतगुणों का पुज बताते हुए मैत्री धारण करो तथा चराचर विश्व को अपने समान कहा है, कि तुम्हारी वाणी पूर्ण सत्य को एक साथ समझो। 68 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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