Book Title: Mahavir ka Mahaviratva Author(s): Omkar Shree Publisher: Z_Ashtdashi_012049.pdf View full book textPage 2
________________ सामयिक रहे सभी वर्ग के, समाज के। उस वीतराग की पर वस्तु रमण / आत्मगुण घात / कैसा अहिंसक ? अन्त:वाणी का अपूर्व था मुखर मौन। यह वीरत्व अपरिमेय है पर पुदगल को स्व जो कथे कैसा सत्यवादी ? अंतिम जैन तीर्थंकर की अद्यावधि मर्यादा का। बिना पुदगल आज्ञा करे ग्रहण - कैसा अचौर्यव्रत ? बहुत कुछ अनकहा कहा, महावीर वाणी की श्रुत परम्परा जो पुदगल भोगे वह - कैसा ब्रह्मचारी ? ने ऐसा खुला-खुला ऐसा खिला-खिला तीर्थंकर महावीर ही तो नाम रूप पद मू.परिग्रही - वो कैसा त्यागी ? थो जो अपने समय में ज्योतिषी पुष्प से कहा-मैं परिवार के साथ - वरलाल नाहटा महावीर नाम न बनावट का, न बुनावट का। वह तो प्रशान्त * संवर निर्विकल्प ध्यानी है मेरा पिता, वीर हैं अहिसक कान्तिपथ का वह हर युग का, हर वर्ग का है। अहिंसा है मेरी माँ, महावीरत्व व्याख्या नहीं चाहता ब्रह्मचर्य है भाई, हम व्यक्ति है हदपार। मनुष्य बनने की बातें बघारने से अनासक्ति है बहिन, आदमी अनादमी ही बना रहता है। बनो मत कुछ। महावीर ने शांति मेरी प्रिया, काल को सुना। गुणा अनन्त ज्ञान, भणा और चुना तो वो पंथ विवेक है मेरा पुत्र, जिसे नहीं साध पाता हर कोई। बात एक दम सीधी सी यह है . क्षमा मेरी पुत्री, कि हम अपने से अपनों के मोह से, लोभ से, लाभ से कसकर सत्य है मेरा मित्र, बन्धे हैं। इस बन्ध से हुण्डा सर्पिणी काल खंड में विरला ही बचा * उपशम मेरा गृह है, है कोई श्रमण कि श्रावक कि कोई भक्त भावक। बन्ध की इस ज्योतिषी मान गया वीरंकर महावीर का कि यह तो धक्कम पेल में हमारा पूर्व भव कर्म संचित पुण्य ले जाये यदि चक्रवर्ती भगवंत है कि जिसका धर्मचक्रप्रबल है, दिव्य है इसका हमें धर्म सभा की ओर तो इस किंचित पुण्य योग को न गंवायें, आचार-छत्र! हम झूठी प्रतिज्ञाओं से बचें, देखा-देखी की नामवरी से बचें तो सौदागर नहीं होता 'धम्मवीर' हमें स्वाध्याय काल में निकटता मिलेगी जरूर महावीर की कि जिसके आगे और पीछे, ऊपर-नीचे जीवन जीने की 'धम्म महावीर की दशाब्दियों की मौन-वाचा को सूत्रों में पिरोते कला' की गूंज है। पिरोते थक गए टीकाकार, भाष्यवेत्ता और मीमांसक। दिव्य ध्वनि को पानेवाले विरलतम सहयोगियों में अग्रणी उन सभी पुरार्वाचीन विद्वानों एवं निश्छल श्रावकों को अब महावीर भाव रूप विद्यमान है हम सबके हृदयों में। कषाय-पट आज के प्रतिभारत-भारत सहित विश्व के समस्त आध्यात्मिकों, खुलें तो अहसासें अपने आंतरिक महावीरत्व को, धर्म पुरुषार्थ वैज्ञानिकों को एवम प्रज्ञानियों को बता देना चाहिये कि महावीर की को, सत्यमार्गी शौर्य को, आत्मा के ओजस और तेजस को हम अहिंसा वाणी कायरों की नहीं यह अभया गिरा है मनुष्य जाति के पा ही लेंगे- इरादा पाक हो और लगन पक्की तो निराश नहीं स्वाभिमान की रक्षा शक्ति है। शस्त्रों व शास्त्रों के सौदागर नहीं करेगा हमें हमारा अर्हत्! निष्काम कर्मयोगी होते हैं। तपस्वी महावीर, बुद्ध गाँधी कि कोई - सूर्य की कोई परिभाषा नहीं। इस तरह वीर धर्मवती होकर मार्टिन लूथर किंग। महावीर ने एक सिद्ध काल गणितज्ञ की सिद्धि यदि हम नहीं है अविश्वासी तो महावीरत्व की व्याख्या फिर पाई, यह युग-सत्य बीसवीं सदी के ढलते-ढलते पश्चिमी जगत क्या? मनसा, वाचा, कर्मणा जो भाव-हिंसा से मुक्त रहे वो ने जाना और माना। महावीर मेथामेटिशयन ने सीधी रेखा की महावीरत्व का धनी है। जो डरा हुआ है अपने कदाचार से वह ज्यामिति की वीरजयी लकीर खींची काल पटल पर कि बिन्दु महावीर का होता कौन है? अनन्त अणिमा धर्मी है कि जिसके बैन्दव-विस्तार से खिंचती है एक लकीर। महावीर की खिंची यह लकीर, लकीर के फकीरों विश्व हितंकर तीर्थंकर थे महावीर के लिए नहीं। भगवान महावीर का समय, हिंसा-जन्य पशु बलियों का, यह काल रेखा की सीध है त्याग की, तप की, साधना क्षत्रपों के दुखद संघर्षों का, वैदिकी असहिष्णुता, सामाजिक दैन्य तन्मयता की, यह रेखा बोलती है, समय का स्वर पट खोलती एवम घोर नास्तिकता का था। युद्धों व संघर्षों की अतिचारी हिंसा है वीर भाव सहित कि का सामना किया युग-कल्प महावीर ने आत्मा की प्रशान्त सहिष्णुता के बल पर। अकलानीय पीड़ायें सही क्रूर प्रतिपक्षियों 0 अष्टदशी / 980 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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