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ओंकारश्री
सहज समझने का सरल सूत्र यही है कि महावीर ने साधुत्व व श्रावकत्व को पहली बार कषायासुरों से जूझने के पाँच महाव्रतों के सूत्र धारे अभय मंत्र साधते हुए। महावीर की साधना कैसी थी?
माना कि शास्त्रं ज्ञापकन तु कारकम्- पर हम तो काल के महाकारक महावीर की साधना की बात करते आचारांग शास्त्र की वीर-सूत्र वाणी को ज्ञापना प्रस्तुत करते हैं कि कैसी थी महावीर की साधना? कहता है शास्त्र :
महावीर की साधना थीकाँस्य पात्र की तरह निर्लेप, शंख की तरह निरंजन, राग रहित, जीव की तरह अप्रतिहत, गगन की तरह आलम्बनरहित,
वायु की तरह अप्रतिबद्ध, • शरद ऋतु के स्वच्छजल की तरह निर्मल,
कमल पत्र की तरह भोग निर्लिप्त,
• कच्छप की तरह जितेन्द्रिय, महावीर का महावीरत्व
गेंडे की तरह राग-द्वेष रहित एकाकी, वीरता, आत्मा का जीवट है। अनन्त शक्ति धर्मा आत्मा का • पक्षी की तरह अनियत विहारी, साक्षात्कार जिसने भी साधा वह शौर्यवान बना, 'महावीर' बना।
भारण्ड की तरह अप्रमत्त, उसे बनना कुछ नहीं था, और वह कुछ नहीं बना। सहज बन गया।
उच्च जाति के गजेन्द्र की तरह शूर, जो सहज होगा वह श्रद्धा शील व विनीत होगा। काल-सत्य का . वृषभ के समान पराकर्मी, आग्रही बनकर उसे सत्याग्रह नहीं करना। कारण साफ कि सिंह की तरह दुर्द्धर्ष, महावीर का समय आग्रही अनुनय विनय का नहीं, असहिष्णुता, . सुमेरु की तरह परिषहों के बीच अचल, हिंसा एवं आग्रही हठ का था, शास्त्रीय दम्भ का था। महावीर चला सागरवत् गंभीर, अकेला, उसे न शास्त्र ढोना था, न शास्त्राश्रयी होना था।
चन्द्रवत् सौम्य, वह चला निर्मल मन से। चैतनन्यता चित्त की लिए वह
सूर्यवत् तेजस्वी, प्रशान्त भाव से उठता, बैठता, सोता, जागता, चलता, ठहरता हर
. स्वर्णवत् कान्तिमान, क्षण संवादित रहा, उस आत्मा से जो रमी-रची-बसी थी देह में विदेह स्वरूप। वह लग्नपूर्वक संलग्न रहा अपनी उस अन्तर्यामी • अग्निवत् दैदीप्यमान चेतना से जो अपने साधक को निर्ग्रन्थ पद देती है निर्बन्ध स्वरूप महावीर अनियत विहारी-परिवारी भी! में स्थित करते हुए।
मैं सुधी पाठक के अंत:ज्ञान के वीर धर्म के प्रति पूर्णत: __ वर्धमान से महावीर का सम्बोधन उसे कब मिला? इसका आश्वस्त हूँ कि वे आचारांग शास्त्र की उक्त २१ महावीर साधना भान हुआ ही नहीं उसे अपने काल में। उसे भान हुआ, आत्मा सरणियों के एक-एक सूक्ष्म पड़ाव को जांचते हुए निश्चित रूप से से आत्मा को देखने का, तलाशने का। यह शौर्य था उसकी टोह लेंगे महावीर के साधना-शौर्य के लोकधर्मी कल्याणपथ को। अंत:स्फूर्त साधना का। हाँ, उसने जिस अहिंसा को भगवती महावीर लोकवासी थे। जनवाणी के वाग्मी थे, मौन वाचा कहा, उसका वाहन सिंह है, इस भान के साथ उसको सम्यग्ज्ञान, के परमवीर कि ब्राह्मण, श्रमण सब उनके सम्मुख रहे एक घाट दर्शन एवम् चारित्र्य का सिंहत्व जागा। सिंह चलता है अकेला। पर अध्यात्म स्वाध्याय प्रतिक्रमण रत, सामायिकी साधते
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________________ सामयिक रहे सभी वर्ग के, समाज के। उस वीतराग की पर वस्तु रमण / आत्मगुण घात / कैसा अहिंसक ? अन्त:वाणी का अपूर्व था मुखर मौन। यह वीरत्व अपरिमेय है पर पुदगल को स्व जो कथे कैसा सत्यवादी ? अंतिम जैन तीर्थंकर की अद्यावधि मर्यादा का। बिना पुदगल आज्ञा करे ग्रहण - कैसा अचौर्यव्रत ? बहुत कुछ अनकहा कहा, महावीर वाणी की श्रुत परम्परा जो पुदगल भोगे वह - कैसा ब्रह्मचारी ? ने ऐसा खुला-खुला ऐसा खिला-खिला तीर्थंकर महावीर ही तो नाम रूप पद मू.परिग्रही - वो कैसा त्यागी ? थो जो अपने समय में ज्योतिषी पुष्प से कहा-मैं परिवार के साथ - वरलाल नाहटा महावीर नाम न बनावट का, न बुनावट का। वह तो प्रशान्त * संवर निर्विकल्प ध्यानी है मेरा पिता, वीर हैं अहिसक कान्तिपथ का वह हर युग का, हर वर्ग का है। अहिंसा है मेरी माँ, महावीरत्व व्याख्या नहीं चाहता ब्रह्मचर्य है भाई, हम व्यक्ति है हदपार। मनुष्य बनने की बातें बघारने से अनासक्ति है बहिन, आदमी अनादमी ही बना रहता है। बनो मत कुछ। महावीर ने शांति मेरी प्रिया, काल को सुना। गुणा अनन्त ज्ञान, भणा और चुना तो वो पंथ विवेक है मेरा पुत्र, जिसे नहीं साध पाता हर कोई। बात एक दम सीधी सी यह है . क्षमा मेरी पुत्री, कि हम अपने से अपनों के मोह से, लोभ से, लाभ से कसकर सत्य है मेरा मित्र, बन्धे हैं। इस बन्ध से हुण्डा सर्पिणी काल खंड में विरला ही बचा * उपशम मेरा गृह है, है कोई श्रमण कि श्रावक कि कोई भक्त भावक। बन्ध की इस ज्योतिषी मान गया वीरंकर महावीर का कि यह तो धक्कम पेल में हमारा पूर्व भव कर्म संचित पुण्य ले जाये यदि चक्रवर्ती भगवंत है कि जिसका धर्मचक्रप्रबल है, दिव्य है इसका हमें धर्म सभा की ओर तो इस किंचित पुण्य योग को न गंवायें, आचार-छत्र! हम झूठी प्रतिज्ञाओं से बचें, देखा-देखी की नामवरी से बचें तो सौदागर नहीं होता 'धम्मवीर' हमें स्वाध्याय काल में निकटता मिलेगी जरूर महावीर की कि जिसके आगे और पीछे, ऊपर-नीचे जीवन जीने की 'धम्म महावीर की दशाब्दियों की मौन-वाचा को सूत्रों में पिरोते कला' की गूंज है। पिरोते थक गए टीकाकार, भाष्यवेत्ता और मीमांसक। दिव्य ध्वनि को पानेवाले विरलतम सहयोगियों में अग्रणी उन सभी पुरार्वाचीन विद्वानों एवं निश्छल श्रावकों को अब महावीर भाव रूप विद्यमान है हम सबके हृदयों में। कषाय-पट आज के प्रतिभारत-भारत सहित विश्व के समस्त आध्यात्मिकों, खुलें तो अहसासें अपने आंतरिक महावीरत्व को, धर्म पुरुषार्थ वैज्ञानिकों को एवम प्रज्ञानियों को बता देना चाहिये कि महावीर की को, सत्यमार्गी शौर्य को, आत्मा के ओजस और तेजस को हम अहिंसा वाणी कायरों की नहीं यह अभया गिरा है मनुष्य जाति के पा ही लेंगे- इरादा पाक हो और लगन पक्की तो निराश नहीं स्वाभिमान की रक्षा शक्ति है। शस्त्रों व शास्त्रों के सौदागर नहीं करेगा हमें हमारा अर्हत्! निष्काम कर्मयोगी होते हैं। तपस्वी महावीर, बुद्ध गाँधी कि कोई - सूर्य की कोई परिभाषा नहीं। इस तरह वीर धर्मवती होकर मार्टिन लूथर किंग। महावीर ने एक सिद्ध काल गणितज्ञ की सिद्धि यदि हम नहीं है अविश्वासी तो महावीरत्व की व्याख्या फिर पाई, यह युग-सत्य बीसवीं सदी के ढलते-ढलते पश्चिमी जगत क्या? मनसा, वाचा, कर्मणा जो भाव-हिंसा से मुक्त रहे वो ने जाना और माना। महावीर मेथामेटिशयन ने सीधी रेखा की महावीरत्व का धनी है। जो डरा हुआ है अपने कदाचार से वह ज्यामिति की वीरजयी लकीर खींची काल पटल पर कि बिन्दु महावीर का होता कौन है? अनन्त अणिमा धर्मी है कि जिसके बैन्दव-विस्तार से खिंचती है एक लकीर। महावीर की खिंची यह लकीर, लकीर के फकीरों विश्व हितंकर तीर्थंकर थे महावीर के लिए नहीं। भगवान महावीर का समय, हिंसा-जन्य पशु बलियों का, यह काल रेखा की सीध है त्याग की, तप की, साधना क्षत्रपों के दुखद संघर्षों का, वैदिकी असहिष्णुता, सामाजिक दैन्य तन्मयता की, यह रेखा बोलती है, समय का स्वर पट खोलती एवम घोर नास्तिकता का था। युद्धों व संघर्षों की अतिचारी हिंसा है वीर भाव सहित कि का सामना किया युग-कल्प महावीर ने आत्मा की प्रशान्त सहिष्णुता के बल पर। अकलानीय पीड़ायें सही क्रूर प्रतिपक्षियों 0 अष्टदशी / 980
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________________ की, परिषहों के मर्मान्तक कष्ट सहे एक वीर कल्प धनी के रूप .श्यामसुन्दर केजड़ीवाल में नितान्त निर्भयता के साथ महावीर ने। कल्प का अर्थ समझ हम समझे महावीर की, अंतरात्मा की अजेयता को। नीति, आचार, व्यवहारी ज्ञान, तप, शील के कल्प गुणों के इस तपस्वी ने उपग्रह और दोषों का निग्रह किया संकल्पी साधक के रूप में। अहिंसा, महावीर की बहुआयामी तेजस्विता पूर्ण युग क्रान्ति की वाहिका थी। चित्त में एकाग्रता के उत्तराध्यनन वर्णित (3114) बीसों सूत्रों के असमाधि स्थानों कर उन्होंने परिहार किया। संवेग, निर्वेद, उपशम, अनिन्दा, भक्ति, अनुकम्पा एवम् वात्सलयादि आठों लक्षणों व रत्नत्रयी को जीवंत व्याख्या दी मौन वाचा की साधना सिद्ध करते हुए भयग्रस्त आकुल भारतीय शिक्षा का समाज में स्थान समाज को भगवान महावीर ने। किसी भी समाज एवं राष्ट्र के सर्वांगीण विकास के लिये ___ महावीर बने राष्ट्र के अद्वितीय अहिंसक क्रान्तिवीर, लोगों का शिक्षित होना आवश्यक है। शिक्षा के द्वारा ही मनुष्य ब्राह्मणों का हृदय जीता। श्रमण-ब्राह्मण एकता कायम की। हजारों को उचित-अनुचित की पहचान होती है। शिक्षा के द्वारा भी साधु-साध्वियों व स्वाध्यायी श्रावकों की आध्यात्मिक जन शक्ति मनुष्य को अपने धर्म एवं कर्तव्यों का ज्ञान प्राप्त होता है। निरक्षर का जनाधार खड़ा किया। अपरिग्रह, अनेकांत और अहिंसा की व्यक्ति को पशु माना जाता है। संस्कृत के एक कवि ने निरक्षर अकार त्रयी की युग प्रचेता महावीर ने 'प्राणी मैत्री' का सौम्य मनुष्य को “साक्षात पशु पुच्छ विषाणहीनः" की संज्ञा दी है। स्वरूप दिया उसे, विश्व को। अणु झुण भौतिकी विज्ञानी अतः सुखी जीवन के लिये प्रत्येक व्यक्ति को साक्षर एवं अलबर्ट आइंस्टीन ने भ० ऋषभ से महावीर तक की जैनत्व शिक्षित होना आवश्यक है। शक्ति के सूत्र तलाशे विज्ञान के पटल पर। मनुष्य के व्यावहारिक जीवन में कदम-कदम पर शिक्षा गुप्तेश्वरनगर, उदयपुर की आवश्यकता पड़ती है। शिक्षित व्यक्ति व्यवसाय एवं रोजगार में भी सफल होता है। ज्ञान के अभाव में निरक्षर व्यक्ति को दूसरों पर आश्रित होना पड़ता है। आज हमारे देश में सरकार सर्व शिक्षा अभियान चलाकर देश के नागरिकों को शिक्षित करने का अथक प्रयास कर रही है। यह दुखद स्थिति है कि आज भी हमारे देश में कुछ नागरिक अनपढ़ हैं। आज समाज और राष्ट्र का सबसे बड़ा दायित्त्व है कि सभी बड़ी लगन से निरक्षरता के उन्मूलन में लग जायें, क्योंकि राष्ट्र की उन्नति के लिये बच्चे-बच्चे को साक्षर बनाना होगा। शिक्षा का प्रचार एवं प्रसार सामाजिक कर्त्तव्य भी है। एक शिक्षित समाज ही धर्म-कर्म में निपुण हो सकता है। अत: समाज के सभी शिक्षित व्यक्तियों का कर्त्तव्य है कि वे समाज से निरक्षरता दूर करने के लिए यथासम्भव प्रयास करें। निरक्षर व्यक्ति को जीवन में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। अत: सम्पूर्ण समाज का साक्षर होना गौरव की बात है। अंत में हमारी यही इच्छा है - "उचित शिक्षा के बिना सूना जहान है। हम सब को शिक्षित करें, यही मेरा अरमान है / / " 0 अष्टदशी / 990