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________________ की, परिषहों के मर्मान्तक कष्ट सहे एक वीर कल्प धनी के रूप .श्यामसुन्दर केजड़ीवाल में नितान्त निर्भयता के साथ महावीर ने। कल्प का अर्थ समझ हम समझे महावीर की, अंतरात्मा की अजेयता को। नीति, आचार, व्यवहारी ज्ञान, तप, शील के कल्प गुणों के इस तपस्वी ने उपग्रह और दोषों का निग्रह किया संकल्पी साधक के रूप में। अहिंसा, महावीर की बहुआयामी तेजस्विता पूर्ण युग क्रान्ति की वाहिका थी। चित्त में एकाग्रता के उत्तराध्यनन वर्णित (3114) बीसों सूत्रों के असमाधि स्थानों कर उन्होंने परिहार किया। संवेग, निर्वेद, उपशम, अनिन्दा, भक्ति, अनुकम्पा एवम् वात्सलयादि आठों लक्षणों व रत्नत्रयी को जीवंत व्याख्या दी मौन वाचा की साधना सिद्ध करते हुए भयग्रस्त आकुल भारतीय शिक्षा का समाज में स्थान समाज को भगवान महावीर ने। किसी भी समाज एवं राष्ट्र के सर्वांगीण विकास के लिये ___ महावीर बने राष्ट्र के अद्वितीय अहिंसक क्रान्तिवीर, लोगों का शिक्षित होना आवश्यक है। शिक्षा के द्वारा ही मनुष्य ब्राह्मणों का हृदय जीता। श्रमण-ब्राह्मण एकता कायम की। हजारों को उचित-अनुचित की पहचान होती है। शिक्षा के द्वारा भी साधु-साध्वियों व स्वाध्यायी श्रावकों की आध्यात्मिक जन शक्ति मनुष्य को अपने धर्म एवं कर्तव्यों का ज्ञान प्राप्त होता है। निरक्षर का जनाधार खड़ा किया। अपरिग्रह, अनेकांत और अहिंसा की व्यक्ति को पशु माना जाता है। संस्कृत के एक कवि ने निरक्षर अकार त्रयी की युग प्रचेता महावीर ने 'प्राणी मैत्री' का सौम्य मनुष्य को “साक्षात पशु पुच्छ विषाणहीनः" की संज्ञा दी है। स्वरूप दिया उसे, विश्व को। अणु झुण भौतिकी विज्ञानी अतः सुखी जीवन के लिये प्रत्येक व्यक्ति को साक्षर एवं अलबर्ट आइंस्टीन ने भ० ऋषभ से महावीर तक की जैनत्व शिक्षित होना आवश्यक है। शक्ति के सूत्र तलाशे विज्ञान के पटल पर। मनुष्य के व्यावहारिक जीवन में कदम-कदम पर शिक्षा गुप्तेश्वरनगर, उदयपुर की आवश्यकता पड़ती है। शिक्षित व्यक्ति व्यवसाय एवं रोजगार में भी सफल होता है। ज्ञान के अभाव में निरक्षर व्यक्ति को दूसरों पर आश्रित होना पड़ता है। आज हमारे देश में सरकार सर्व शिक्षा अभियान चलाकर देश के नागरिकों को शिक्षित करने का अथक प्रयास कर रही है। यह दुखद स्थिति है कि आज भी हमारे देश में कुछ नागरिक अनपढ़ हैं। आज समाज और राष्ट्र का सबसे बड़ा दायित्त्व है कि सभी बड़ी लगन से निरक्षरता के उन्मूलन में लग जायें, क्योंकि राष्ट्र की उन्नति के लिये बच्चे-बच्चे को साक्षर बनाना होगा। शिक्षा का प्रचार एवं प्रसार सामाजिक कर्त्तव्य भी है। एक शिक्षित समाज ही धर्म-कर्म में निपुण हो सकता है। अत: समाज के सभी शिक्षित व्यक्तियों का कर्त्तव्य है कि वे समाज से निरक्षरता दूर करने के लिए यथासम्भव प्रयास करें। निरक्षर व्यक्ति को जीवन में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। अत: सम्पूर्ण समाज का साक्षर होना गौरव की बात है। अंत में हमारी यही इच्छा है - "उचित शिक्षा के बिना सूना जहान है। हम सब को शिक्षित करें, यही मेरा अरमान है / / " 0 अष्टदशी / 990 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.211668
Book TitleMahavir ka Mahaviratva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOmkar Shree
PublisherZ_Ashtdashi_012049.pdf
Publication Year2008
Total Pages2
LanguageHindi
ClassificationArticle & Tirthankar
File Size390 KB
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