Book Title: Mahavir aur Malavpati Dasharnabhadra Author(s): Bhaskar Muni Publisher: Z_Munidway_Abhinandan_Granth_012006.pdf View full book textPage 2
________________ २८० मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ हो उठा । भगवन्त ने उत्कृष्ट निनाद से मिष्ट-शिष्ट मेघघोष की तरह गम्भीर सभी जगह सुनाई देनेवाला, भिन्न-भिन्न व्यक्तियों के विभिन्न सन्देहों का एक ही साथ एक बात में निराकरण करने वाला दिव्य प्रवचन प्रारम्भ किया। मानो प्रवचन के महान लाभ से कोई वंचित न रह जाय, इस कारण प्राणी-प्राणी और ज्ञानी-ध्यानी में दौड़ादौड़ एवं होड़ा-होड़-सी लगी थी। दशार्णभद्र ने भी सोचा- "मुझे भी अतिशीघ्र प्रभु दर्शन के लिए जाना है। क्योंकि प्रभुदर्शन, वाणी, चरणस्पर्श, सेवा भक्ति एवं महा मांगलिक का सुनना पुण्यवंत को ही मिलता है । अतः ऐसा सुनहरा मौका मुझे सहज में ही मिला है। घर बैठे गंगा आई, फिर प्यासा क्यों रहूँ और कर्मदल-मल को दूर करूं ? अतएव क्षणमात्र का भी प्रमाद न करते हुए मुझे सेवा में पर्युपासना में पहुँचना अत्यन्त अत्युत्तम रहेगा। दूसरे ही क्षण अपर विचारों की तरंगें उठ खड़ी हुई "क्या सीधी-सादी पोशाक में जैसा खड़ा हूँ, वैसा ही चला जाऊँ ? नहीं-नहीं। यह तो सामान्य वैभव का दिग्दर्शन-प्रदर्शन होगा। साधारण वेश में तो नगर के प्रत्येक नर-नारी जा ही रहे हैं। मुझमें और साधारण जन में परिधान-वाहन का अन्तर तो होना ही चाहिए। ___मुझे पूर्वकृत पुण्य प्रताप से अपार धनराशि, दास-दासी एवं द्विपद-चतुष्पद आदि सभी प्रकार की सम्पत्ति मिली हैं। उसका उपयोग करना ही तो श्रेयस्कर होगा। वर्ना एक दिन तो इस सम्पदा का विनाश सुनिश्चित है। अतएव प्रभु दर्शन के बहाने सम्प्रति सम्पत्ति का सांगोपांग रूप से प्रदर्शन करना समयोचित ही रहेगा। इससे समीपस्थ राजा-महाराजाओं पर अच्छा प्रभाव पड़ेगा और यत्र-तत्र-सर्वत्र सभी को ऐसा मालूम हो जायेगा कि नृप दशार्णभद्र के पास अट खजाना विद्यमान है। आगन्तुक जन समूह भी मेरे विपुल-वैभव का सहज में ही दर्शन भी कर सकेगा और अनुभव भी उनको ऐसा हो जायेगा कि-नृप दशार्णभद्र के सिवाय इतना विशाल आडम्बर और ठाट-बाट के साथ अन्य कोई भी सम्राट् आज दिन तक भगवान महावीर के दर्शन के लिए नहीं आया। 'एक पन्थ अनेक काज' काम का काम, नाम का नाम और दर्शन के बहाने वैभव का प्रदर्शन जहाँ-तहाँ मेरे नाम की माला फिरने लगेगी। बस सम्पूर्ण लाव-लश्कर के साथ जाने की नृप ने ठान ली। उत्साह उमंग के साथ-साथ राजा के मन-मस्तिष्क में भरी नदी की तरह अभिमान का वेग भी बढ़ने लगा। "भारी से भारी तैयारी करो" चतुरंगिणी सेनापतियों को नप की ओर से शीघ्र आदेश मिला । तदनुसार सुवर्णाभूषणों से भूषित हजारों हाथी-घोड़े-रथों की पंक्तियाँ आ खड़ी हुईं। जिनमें नृप दशार्णभद्र का गजरत्न मानो देवेन्द्र सवारीवत् और प्रमुखा रानी का भी इन्द्राणीवत् भास रहा था। इस प्रकार हजारों पैदल सेना से परिवृत हुए, समस्त परिवार से घिरे हुए गाने-बजाने की जयघोष से दशों-दिशाओं को पूरित करते हुए नप आगे बढ़ने लगे। जनता असीम वैभव का दर्शन का आश्चर्योदधि में डब रही थी। इतना वैभव ! हमारे नाथ के पास । युग-युग तक जीओ हमारे भूपति ! दशार्णभद्र ! इस प्रकार जनता भवनोपरि से शुभ मंगल कामना से सुमनों को बिखेर रही थी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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