Book Title: Mahavir aur Hamara Kartavya Author(s): Darbarilal Kothiya Publisher: Z_Darbarilal_Kothiya_Abhinandan_Granth_012020.pdf View full book textPage 1
________________ भ० महावीर और हमारा कर्तव्य प्रस्तुतमें विचारणीय है कि वे कौन-से गुण और कार्य थे, जिनके कारण भगवान महावीर भगवान बने और सबके स्मरणीय हुए। आचार्यों द्वारा संग्रथित उनके सिद्धान्तों और उपदेशोंसे उनके वे गण और कार्य हमें अवगत होते हैं । महावीरने अपने में निःसीम अहिंसाकी प्रतिष्ठा की थी। इस अहिंसाकी प्रतिष्ठासे ही उन्होंने अपने उन समस्त काम-क्रोधादि विकारोंको जीत लिया था। कितना ही क्रूर एवं विरोधी उनके समक्ष पहुँचता, वह उन्हें देखते ही नत-मस्तक हो जाता था, वे उक्त विकारोंसे ग्रस्त दुनियाँसे इसी कारण ऊँचे उठ गये थे। उन्होंने अहिंसासे खुद अपना जीवन बनाया और अपने उपदेशों द्वारा दूसरोंका भी जीवन-निर्माण किया। एक अहिंसाकी साधनामेंसे ही उन्हें त्याग, क्षमता, सहनशीलता, सहानुभूति, मृदुता, ऋजुता, सत्य, निर्लोभता, ब्रह्मचर्य, श्रद्धा, ज्ञान आदि अनन्त गुण प्राप्त हुए और इन गुणोंसे वे लोकप्रिय तथा लोकनायक बने । लोकनायक ही नहीं, मोक्षमार्गके नेता भी बने । हिंसा और विषमताओंका जो नग्न ताण्डव-प्रदर्शन उस समय हो रहा था, उन्हें एक अहिंसा-अस्त्र द्वारा ही उन्होंने दूर किया और शान्तिकी स्थापना की । आज विश्वमें भीतर और बाहर जो अशान्ति और भय विद्यमान हैं उनका मूल कारण हिंसा एवं आधिपत्यकी कलुषित दुर्भावनाएँ हैं। वास्तवमें यदि विश्वमें शान्ति स्थापित करनी है और पारस्परिक भयोंको मिटाना है तो एक मात्र अमोघ अस्त्र 'अहिंसा' का अबलम्बन एवं आचरण है । हम थोड़ी देरको यह समझ लें कि हिंसक अस्त्रोंसे भयभीत करके शान्ति स्थापित कर लेंगे, तो यह समझना निरी भूल होगी । आतंकका असर सदा अस्थायी होता है । पिछले जितने भी युद्ध हुए वे बतलाते हैं कि स्थायी शान्ति उनसे नहीं हो सकी है। अन्यथा एकके बाद दूसरा और दूसरेके बाद तीसरा युद्ध कदापि न होता । आज जिनके पास शक्ति है बे भले ही उससे यह सन्तोष कर लें कि विश्वशान्तिका उन्हें नुस्खा मिल गया, क्योंकि हिंसक शक्ति हमेशा बरबादी ही करती है । दूसरेके अस्तित्वको मिटा कर स्वयं कोई जिन्दा नहीं रह सकता। अतः अणुबम, उद्जन बम आदि जितने भी हिंसाजनक साधन हैं उन्हें समाप्त कर अहिंसक एवं सद्भावना पूर्ण प्रयत्नोंसे शान्ति और निर्भयता स्थापित करनी चाहिए। हमारा कर्तव्य होना चाहिए कि हिंसाका पूरा विरोध किया जाय । जिन-जिन चीजोंसे हिंसा होती है अथवा की जाती है उन सबका सख्त विरोध किया जाय । इसके लिए देशके भीतर और बाहर जबर्दस्त आन्दोलन किया जाय तथा विश्वव्यापी हिंसाविरोधी संगठन कायम किया जाय । यह संगठन निम्न प्रकारसे हिंसाका विरोध करे १. अणुबम, उद्जनबम जैसे संहारक वैज्ञानिक साधनोंका आविष्कार और प्रयोग रोके जायें तथा हितकारक एवं संरक्षक साधनोंके विकास व प्रयोग किये जायें । २. अन्न तथा शाकाहारका व्यापक प्रचार किया जाय और मांसभक्षणका निषेध किया जाय । ३. पशु-पक्षियोंपर किये जानेवाले निर्मम अत्याचार रोके जायें। ४. कषायी-खाने बन्द किये जायें। उपयोगी पशुओंका वध तो सर्वथा बन्द किया जाय । -१७३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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