Book Title: Mahavir Vinanti
Author(s): Mehulprabhsagar
Publisher: Mehulprabhsagar

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Page 3
________________ चउसठि इंद्र करइ नितु सेव। श्रेय काजि तानुय पइ लागउ, अलविहिं मिथ्या तह भ्रम भागउ।।1।। भाग सोभाग संभाग फल कारणो, विकट भव कोटि भय भीरू जण तारणो। तरुण रवि बिंब जिम विसम तम नासणो, सुहइ सिरि वीरजिण सुजण आसासणो।।2।। सयल दुह तापहर पवर संवरधरो, भवियण मोर गण मण पमोयंकरो। श्रेय सुख संपदा वेलि वद्धारणो, जयउ जगि वीर जिण जलद साधारणो।।3।। भास साधारण सवियह सत्तु मित्त, परु हसिय हं पिय हर एगचित्त। अडवडिय हं मुझ आधार एहु, प्रभु आणिनु आणिनु भवह छेहु।।4।। हउं भमि भमि भागउ भवह माहि, मई कूड कपट किय करि जण प्रवाहि। हिव आविय तुय पहु पाय हेठि, मुय सामुहिं करि करि सोम नेठि।।5।। भास अणो वारि संसारि चउगइ फिरंता, सहिया दोष वसि दुक्ख जे मई अणंता। किसुं ते कहु आपणी वात हीणी, हहा कर्मनी धाडि धिग जउ न खीणी।।6।। क्षणं रागि रातउ क्षणं मयणि मातउ, क्षणं दुखि तातउ क्षणं भवि विरातउ। कषाए मिली एम आवर्ति पाडिउ, न को वइरि ए छल लही चक्रि चाडिउ।।7।। न ते देव दोसा न ते पाप पोसा, न ते सास सोसा न ते मर्म मोसा। न जे देव मूंकेड मेल्हइ लगार, मरे मोहणी कर्म केरउ विकार।।8।। न तं सर्गि पातालि आगासि ठाणं, न सा योनि जाई कुलं तं पहाणं। असंखे परे कर्म नइ मर्मि भेलिउ, जिहां देव हउं नवनवी परि न खेलिउ।।9।। भास तउ जगजीवन जगसरण, चूरइ भव दुहपास। ते तउंमई पामिय कटरि(करि), पूरि अम्हारिय आस||1010 नव नव परिभवि भमत मई, इकु तउं दीठउ देव। तावि लगउ तुय पय कमलि, तारि तारि मु हेव।।11।। सुलसा रेवति श्रेणियहं, तइंदीधी निजि सिद्धि। तुय संगम निप्फल नहिय, तिम मूं पुणि दइ सिद्धि।।12।। आषाढ हसिय छछि दिणि, चवियउ चरम जिणिंद। चैत्र धवल तेरिसि निसिहं, जमणि जग आणंद।।13।। मग्गसिरह सामल दसमि, आदरियउं चारित्त। वइसाहह ऊजल दसमि, वर केवल संपत्त।।14।। कातिय मावसि सिव रमणि, जे तई परिणिय सार। तिह जोवानि खंति मह, पूरि तुं प्रभु इकुवार।।15।। इय मइ वीर जिणेसर थुणियउ, ताम सफल दिन एहु जु गणियउ। तसु पय जे जइसायरु वंदई, बोधिलाभ गुणि ते चिरु नंदई।।16।। इति श्री महावीर विनती __-श्री जिनहरि विहार धर्मशाला, तलेटी रोड़ पालीताना 364270 गुजराज 13| जहाज मन्दिर * अप्रेल - 2017

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