Book Title: Mahavir Swaminu Nishal garnu
Author(s): Dharmkirtivijay
Publisher: ZZ_Anusandhan

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________________ श्रीमहावीर स्वामीनुं निशालगरणुं ॥ निशालगरणो त्रिभुवनजिन आणंदा रे, Jain Education International - माता त्रिशलादेवी नंदा रे, वडु रे वीर जिणंद सोहामणा ए ॥१॥ डु (दु) रगनीया मन दमता रे, सखी साजनीया मनगमता रे, रमता ते वीरकुंमर मोटा थया ए ॥२॥ जिम जिम वीरकुंमर हसें, सखी तिम तिम दिलडां उलस्यें, उछरंगे निशालगरणो मांडियो ए ॥३॥ धसमस करती धाई, सखी बेहनी मंगल गाइ रे, आवे रे नरनारी उतावला ए ॥४॥ धसमस करती मांडी रे, सखी कुंअर ताणें साडी रे, सुखलडी मांगे लहुँउ मन रली ए ॥ ५ ॥ पुत्र जीये हरो वांकडां, सखी कोटें सोवन सांकला, वांकडां साव रत्नहीरे जड्यां ए ॥६॥ आरस मोती अंगा रे, सखी निरमल रंग सुरंगा रे, जास्युं रे सहु आवे सोहामणा ए ||७|| सं. मुनि धर्मकीर्तिविजय For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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