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श्रीमहावीर स्वामीनुं निशालगरणुं ॥
निशालगरणो
त्रिभुवनजिन आणंदा रे,
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माता त्रिशलादेवी नंदा रे,
वडु रे वीर जिणंद सोहामणा ए ॥१॥
डु (दु) रगनीया मन दमता रे,
सखी साजनीया मनगमता रे, रमता ते वीरकुंमर मोटा थया ए ॥२॥ जिम जिम वीरकुंमर हसें,
सखी तिम तिम दिलडां उलस्यें, उछरंगे निशालगरणो मांडियो ए ॥३॥ धसमस करती धाई,
सखी बेहनी मंगल गाइ रे, आवे रे नरनारी उतावला ए ॥४॥ धसमस करती मांडी रे,
सखी कुंअर ताणें साडी रे, सुखलडी मांगे लहुँउ मन रली ए ॥ ५ ॥ पुत्र जीये हरो वांकडां,
सखी कोटें सोवन सांकला, वांकडां साव रत्नहीरे जड्यां ए ॥६॥ आरस मोती अंगा रे,
सखी निरमल रंग सुरंगा रे, जास्युं रे सहु आवे सोहामणा ए ||७||
सं. मुनि धर्मकीर्तिविजय
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अनुसंधान-१५ .70 हाथें सोवनपाटडी
राणी त्रिशला ओढ़ें घाटडी, घाटडी साव रतन-हीरे जडी ए ||८॥ . बांहे बांधो नीरली
सखी हाथें सोवनमुद्दी (मुद्रडी) मुद्दी(द्रडी) जोता पोंचे मन रली ए ॥९॥ केडें धसमस फाला रे,
तमे म लड्यो बंधव आडा रे, चढायूँ रे गयवर जगधणी ए ॥१०॥ खांडे भरीयां खडीयां रे,
सखी माणिक-मोती जडीयां रे, खडीयां रे बालकबुद्धे सांचस्यां ए ॥११॥ आण्या धाणी दालीया,
तमें खाउ सघला निसालीया, नीसालीया वीरवर्द्धमान भेला भणे ए ||१२|| ल्यो सखी अखी आणंद,
सखी लावें भरी भरी भाणाए माणस रे सहु आवे सोहामणा ए ॥१३॥ हाथें लामण दिवो रे,
तमें महावीर घणुं जीवो रे, आसीसो आपे सहीरो मन रली ए ॥१४॥ काम सघलु चीतव्यु,
सखी गयवर काधे जइ महावीर सरस्वती भणवा संचरीया ए ॥१५।। अध्यारु उठी उभा थया,
सखी दोय कर जोडी आगल रह्या,
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अनुसंधान-१५.71 महावीरे अध्यारुने भण्यावीया ए ॥१६॥ व्याकर्ण जाई तिहां कह्यु,
सखी इन्द्रतणुं आसन चल्युं, त्रिण प्रदक्षिणा देइ इंद्र पाये पड्या ए ॥१७॥ भेर-भुंगल वाजें छे,
सखी इन्द्रदल बाजें छे, महावीर सरस्वती भणी घरें आवीया ए ॥१८॥ घर घर धो वधामणां
सखी फइअर ल्यो तमे भांमणां, महावीर गोत्र पाय लगाडीया ए ॥१९।। त्रीण भुवननो स्वामी रे,
जेणें अविचल पदवी पामी रे, सुर कहें प्रभुजीने चरणे नमु ए ॥२०॥
इति श्रीनिशालगरणो महावीरस्वामीनो संपुर्ण ॥ लि. - मं. हेमविमलजी ॥