________________
अनुसंधान-१५.71 महावीरे अध्यारुने भण्यावीया ए ॥१६॥ व्याकर्ण जाई तिहां कह्यु,
सखी इन्द्रतणुं आसन चल्युं, त्रिण प्रदक्षिणा देइ इंद्र पाये पड्या ए ॥१७॥ भेर-भुंगल वाजें छे,
सखी इन्द्रदल बाजें छे, महावीर सरस्वती भणी घरें आवीया ए ॥१८॥ घर घर धो वधामणां
सखी फइअर ल्यो तमे भांमणां, महावीर गोत्र पाय लगाडीया ए ॥१९।। त्रीण भुवननो स्वामी रे,
जेणें अविचल पदवी पामी रे, सुर कहें प्रभुजीने चरणे नमु ए ॥२०॥
इति श्रीनिशालगरणो महावीरस्वामीनो संपुर्ण ॥ लि. - मं. हेमविमलजी ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org