Book Title: Mahavir Parna Stavan Author(s): Suyashchandravijay, Sujaschandravijay Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 2
________________ अनुसन्धान ४७ श्रीअरिहंत अनंत गुण, अतिशयपूरण गात्र, मुनि जे नांणी संयमी, ते उत्तम कहिइ पात्र ||१|| पात्र तणी अनुमोदना, करतो जीरणसेठ, श्रावक अच्युत गति लहें, नव ग्रैवेकें हेठ, ॥२॥ दश चोंमासां वीरजी, विचरता संजमवास, विशालापुरि आवीआ, इग्यारमें चोमांस, ॥३॥ ढाल चोमासें इग्यारमेंजी, विचरता साहसधीर, विशालापुर आवीआ, स्वामी श्रीमहावीर, ॥४॥ जगतगुरु त्रिशलानंदनजी (आंकणी), भलें में भेट्या श्रीजी(जि)नराय, सखीरी ! चोक वधावो आय, मेरे भाग अनोपम माय, जगत... ॥५॥ बलदेवनो छे देहरोजी, तिहां प्रभु काउसग कीध, पच्चक्खाण चोमांसि(सी)नुंजी, स्वामि(मी)ओ तप लीध, जगत... ।।६।। जीरणसेठ तिहां वसेजी, पाले श्रावकधर्म, आकारे तिणे ओलख्याजी, जाणे धर्मनो मर्म, जगत... ॥७॥ आज छे उपवासीआजी, स्वामी श्रीवर्धमान, काल सही प्रभु जीमस्येंजी, स्वहत्थें देस्युं दांन, जगत... ||८|| जीरणसेठ इम चिंतवेजी, सफल हुस्यें मुझ आस, पक्ष मास गणतां थकाजी, पूरण थयुं चोमास, जगत... ||९|| सामग्री सवी(वि) आहारनीजी, सेहजें हुइ तेणी वार, प्रभुनो मारग पेखतोजी, बेंठो घरनें बार, जगत... ॥१०॥ घर आव्या , पाहुणाजी, जुतर्या अक वार, प्रभुजी कीहां रे पधारस्येजी, में नुहतर्या वारोवार, जगत... ॥११॥ पछे करस्युं पारणुंजी, हुं प्रभुने प्रतिलाभ, होयें मनोरथ अहवाजी, तो ही न वरसें आभ, जगत... ॥१२॥ अवसरें उठ्या गोचरीजी, श्रीसिद्धारथपुत्र, विशालपुर आवीआजी, पु(पूरणधरि पहुत, जगत... ॥१३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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