Book Title: Mahavaggatthakatha
Author(s): Vipassana Research Institute Igatpuri
Publisher: Vipassana Research Institute Igatpuri

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Page 457
________________ [६८] दीघनिकाये महावग्गट्ठकथा २१४ ६४६ ६४७ ६४८ २१५ २१६ ६४९ २१६ ६५० २१७ २१८ २२१ ६५१ ६५२ ६५३ ६५४ ६५५ ६५६ ६५७ ६५८ २२२ २२३ ६५९ २२४ २२४ २२५ २२६ २२७ २२८ २२९ ठितस्स एवं मे सुतन्ति तस्सा किर सन्निपतन्ति विय करोति नमस्समाना परिनिब्बायन्तो अभिनिष्फन्नो नीलुप्पलेहि फलिस्सति अभिनिष्फन्नो सदिसं वायथा तिट्ठति, एत्थ जाणे ठितस्स अनुसानिया पीळं करोन्ती ति सत्त अनुपुरोहिते पोराणकं कही अकविं सकुणपगन्धा आह । तस्सत्यो मे समनस्स एसेव गतगतवाने सब्बानिपेतानि एवं मे सुतन्ति न मयं अम्हे हनन्तु राजानो पसन्ना एतस्साति सब्बपठमं वण्णभूमि अपि सुदं पच्छिमचक्कवालमुखवट्टियं ओतिण्णो अथ ततियो २३० २३१ २३२ २३३ २३४ ६६० ६६१ ६६२ ६६३ ६६४ ६६५ ६६६ ६६७ ६६८ ६६९ ६७० ६७१ ६७२ ६७३ ६७४ ६७५ ६७६ ६७७ ६७८ ६७९ ६८० ६८१ २३५ २३६ २३७ २३८ २३८ २३९ २४० २४१ २४२ २४२ २४३ २४४ २४५ 68 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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