Book Title: Maharashtri prakrit me Mul va varna ka Abhav
Author(s): Sudarshanlal Jain
Publisher: Z_Parshvanath_Vidyapith_Swarna_Jayanti_Granth_012051.pdf

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Page 5
________________ 23 महाराष्ट्री प्राकृत में मूल 'य' वर्ण का अभाव (झ) थ्य>छ-हस्व स्वर परे रहते 'थ्य' को 'छ' होता है। जैसे-~-पथ्यम्>पच्छं, मिथ्या>मिच्छा, सामर्थ्यम् > सामच्छं (सामत्थं भी होता है)। (ञ) थ्य->च-आर्ष प्राकृत में थ्य को च होता है। तथ्यम्> तच्चं / (ट) य्य, र्य द्या>ज्ज-य्य, र्य और द्य को 'ज्ज' होता है / जैसे-जय्य>जज्जो, शय्या> सेज्जा, भार्या>भज्जा (भारिआ), कार्यम् > कज्जं, पर्यायः>पज्जाओ सूर्यः>सज्जो, मर्यादा> मज्जाया, मद्यम मज्जं, वेद्यः>वेज्जो, द्यतिः>जई. द्योतः>जोओ। (ठ) र्य>र (जापवाद)- ब्रह्मचर्य, तूर्य, सौन्दर्य और शौण्डीर्य के 'य' को 'र' होता है। जैसे-ब्रह्मचर्यम् >बह्मचेरं तूर्यम् >तूरं, सौन्दर्यम् >सुन्देरं (सुन्दरिअं), शौण्डीर्यम्>सोण्डीरं / ['एत' परे रहते-पर्यन्तः>पेरन्तो (पज्जन्तो)] (ड) र्य>रं-धैर्य के र्य' को 'रं' विकल्प से होता है। जैसे>धैर्यम्-धीरं, धिज्जं / [एत परे रहते-आश्चर्यम>अच्छेरं] (ढ) र्य> रिअ, अर, रिज्ज, रीअ-आश्चर्य शब्द में अकार परे रहते ‘र्य' को 'रिअ' आदि आदेश होते हैं। जैसे-अच्छरिअं, अच्छअरं, अच्छरिज्जं, अच्छरीअं / (ण) र्य>ल्ल–पर्यस्त, पर्याण और सौकुमार्य शब्दों के र्य' को 'ल्ल' होता है। जैसेपर्यस्तम्>पल्लट्ट पल्लत्थं; पर्याणम् >पल्लाणं; सौकुमार्यम् >सोअमल्लं। (पल्यङ्क>पल्लङ्क पलिअंक ये भिन्न-प्रक्रिया के उदाहरण हैं)। (त) ध्य, ह्य>झ' / जैसे-- ध्यानम् >झाणं, उपाध्यायः>उवज्झाओ, बध्यते>वज्झए, स्वाध्यायः>सज्झाओ, मह्यम्, मज्झं, गुह्यम् >गुज्झं, नह्यति>णज्झइ, सह्यम् >सज्झं, अनुग्राह्या>अणु गेज्झा। उपसंहार-इस तरह हम देखते है कि महाराष्ट्री प्राकृत में मूल 'य' वर्ण का अभाव है उसमें लघुप्रयत्नोच्चारित 'य' श्रुतिरूप से जो 'य' वर्ण दिखलाई देता है वह जैन महाराष्ट्री का परवर्ती प्रभाव है। यह 'य' श्रुति वस्तुतः मूल 'य' वर्ण नहीं है अपितु तत्सदश सुनाई पड़नेवाली भिन्न ध्वनि है जिसे लघुप्रयत्नोच्चारित श्रुति कहा गया है और जो 'अ' उवृत्तस्वर (लुप्त व्यञ्जन वाला स्वर) के स्थान पर होती है। संस्कृत वैयाकरण पाणिनि आदि ने भी 'य' और लघुप्रयत्नोच्चारित 'य' में भेद किया है। जिन संस्कृत शब्दों में 'य' वर्ण पाया जाता है वे महाराष्ट्री प्राकृत में परिवर्तित होते समय 'य'-विहीन हो जाते हैं / पदादि में, पदान्त में तथा संयुक्तावस्था में तो 'य' वर्ण दिखलाई 1. ह्रस्वात् थ्य-श्च-त्स-प्सामनिश्चले। हेम० 8.2.21 तथा वृत्ति। सामोत्सुकोत्सवे वा / हेम० 8.2.22 / 2. वही। 3. द्यय्यर्यां जः / हेम० 8.2.24 / 4. ब्रह्मचर्य-तुर्य-सौन्दर्य-शौण्डीयें यों रः। हेम० 8.2.63 / एत: पर्यन्ते / हेम० 8.2.65 . 5. धैर्य वा / हेम० 8.2.64 / आश्चर्ये / हेम० 8.2.66 / 6. अतो रिआर-रिज्ज-रीअं। हेम० 8.2.67 / 7. पर्यस्त-पर्याण-सौकुमार्ये ल्ल: / हेम० 8.2.68 / 8. साध्वस ध्य-ह्यां झः / हेम० 8.2.26 / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org -

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